उन 39 मासूम जानों को श्रद्धांजलि दे सकते हैं, जो अपने हीरो को सुनने आए थे

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

तमिलनाडु के करूर जिले में शनिवार को एक्टर विजय की रैली में जो हुआ, वह सिर्फ हादसा नहीं, प्रशासन और राजनीति दोनों पर करारा तमाचा है। हजारों की भीड़, बिजली गुल, लाठीचार्ज और भगदड़ – और अब 39 मौतें, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।

भीड़ आई थी “थलापति” को सुनने, लेकिन लौट रही है कफन में लिपटी चुप्पी के साथ।

चश्मदीदों की ज़ुबानी: “गाना गूंजा, फिर चीखें सुनाई दीं”

रैली में मौजूद कई चश्मदीदों ने बताया कि विजय ने एक विवादास्पद गाना गाया, जिसमें पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को “10 रुपये का मंत्री” कहा गया।
इसके बाद भीड़ में उबाल आया और फिर फ्लडलाइट बंद होते ही अफरा-तफरी मच गई।

एक महिला अपनी बच्ची को पागलों की तरह ढूंढती दिखी, लोग एक-दूसरे को कुचलते हुए निकलने लगे।

कुछ का कहना है पुलिस ने हल्का लाठीचार्ज भी किया, जो भगदड़ का ट्रिगर बना।

हादसे से जुड़ी 5 बड़ी बातें

अब तक 39 मौतें, कई घायल गंभीर हालत में ICU में। विजय का गाना और बिजली गुल होना – भगदड़ के संभावित कारण। पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था नाकाफी, भीड़ काबू से बाहर। प्रशासन पर सवाल: बैन के बावजूद रोड शो की अनुमति कैसे दी गई?

जस्टिस अरुणा जगथेशन के नेतृत्व में जांच पैनल गठित।

“10 रुपये का मंत्री” और विजय का तंज

विजय ने मंच से पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी पर तीखा कटाक्ष किया:

“करूर में रहते हुए मैं चुप रहूं? वह मंत्री थे, लेकिन अब भी मंत्री की तरह काम कर रहे हैं!”

उन पर आरोप लगाया कि वे डीएमके के लिए “एटीएम की तरह काम कर रहे हैं” और कालेधन को ट्रांसफर करते रहे।

कटाक्ष तो था, लेकिन क्या इसने भीड़ को आग में झोंक दिया?

बैन के बावजूद रोड शो, प्रशासन पर उठे सवाल

करूर में रोड शो पर पहले से बैन था, फिर भी विजय का रोड शो निकाला गया।

प्रशासन की दलील:

“जितने की अनुमति थी, उससे ज्यादा लोग आ गए।”

सवाल:

फिर बैन के बावजूद परमिशन किसने दी? और भीड़ को मैनेज क्यों नहीं किया गया?

Vijay’s Political Ambitions अब सवालों के घेरे में

विजय की राजनीति में एंट्री को लेकर पहले ही चर्चाएं थीं, लेकिन अब ये रैली उन्हें एक हकीकत का आईना दिखा गई – राजनीति सिर्फ भाषण नहीं, ज़िम्मेदारी भी है।

“थलापति” बनने चले थे, लेकिन भीड़ ने बता दिया कि नेता बनने के लिए सिर्फ स्टारडम नहीं, सिस्टम भी चाहिए।

विजय की करूर रैली एक बड़ा सबक बन गई है – भीड़ का जोश, नेताओं के कटाक्ष, और प्रशासन की लापरवाही, जब एक साथ मिल जाएं तो नतीजा मौत बनकर टूटता है

 अब देखना है कि जांच रिपोर्ट में क्या सामने आता है —

क्या ये एक प्राकृतिक भगदड़ थी?

या फिर राजनीति का एक घातक नतीजा?

फिलहाल, हम सिर्फ उन 39 मासूम जानों को श्रद्धांजलि दे सकते हैं, जो अपने हीरो को सुनने आए थे और कभी वापस नहीं लौटे।

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