उत्तराखंड में खत्म हुआ मदरसा बोर्ड, अब सब पढ़ेंगे ‘एक ही किताब’!

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

पुष्कर सिंह धामी सरकार ने अल्पसंख्यक शिक्षा के क्षेत्र में वो कर दिखाया है, जो अब तक सिर्फ घोषणाओं में होता था। उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025 को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है और इसके साथ ही राज्य का मदरसा बोर्ड अब इतिहास बन गया है

अब उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जिसने मदरसा बोर्ड को खत्म कर, अल्पसंख्यक संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल कर दिया है।

अब क्या होगा मदरसों का?

बिल के लागू होते ही राज्य में सभी मदरसों को दो चीज़ें करनी होंगी:

  1. उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से मान्यता लेना।

  2. उत्तराखंड बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन से संबद्ध होना।

यानि अब मदरसों में भी NCERT की किताबें, periodic tests और शायद PTMs भी होंगी!

पहले जहां तालीम मजहबी तर्ज पर दी जाती थी, अब वहां गणित, विज्ञान, कंप्यूटर और पर्यावरण जैसे विषय अनिवार्य होंगे। इसे कहते हैं शिक्षा का सच्चा सेक्युलराइजेशन!

एक समान शिक्षा व्यवस्था – अल्पसंख्यकों के लिए बड़ा बदलाव!

सरकार का मानना है कि इससे अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को मौजूदा जॉब मार्केट और प्रतियोगी परीक्षाओं में बेहतर मौका मिलेगा। अब UPSC हो या JEE, तैयारी हर स्कूल से बराबर होगी!

लेकिन साथ ही कुछ संस्थाओं और धार्मिक संगठनों की भौंहें भी तनी हुई हैं। उनका कहना है कि ये धार्मिक शिक्षा पर हमला है, जबकि सरकार इसे “भविष्य निर्माण की दिशा में ऐतिहासिक फैसला” बता रही है।

सवाल उठते हैं, जवाब सरकार दे रही है!

  • Q. क्या धार्मिक शिक्षा अब पूरी तरह बंद?
     नहीं, धार्मिक शिक्षण दिया जा सकता है, लेकिन मुख्यधारा के सिलेबस के साथ।

  • Q. क्या इस बदलाव से अल्पसंख्यक संस्थानों की पहचान खत्म होगी?
     सरकार का दावा है: “पहचान नहीं, मूल्यवर्धन होगा!”

  • Q. क्या शिक्षक और स्टाफ को बदला जाएगा?
     योग्यताओं के अनुसार ट्रेनिंग और अपस्किलिंग की व्यवस्था होगी।

मदरसे अब सिर्फ दीनी नहीं, दुनियावी भी होंगे!

उत्तराखंड में अब मदरसे भी कहेंगे – “Science is the new Noor!”

धामी सरकार ने जहां शिक्षा को समानता की पटरी पर लाने की पहल की है, वहीं आने वाले दिनों में यह कदम एक नेशनल मॉडल भी बन सकता है। अल्पसंख्यकों की शिक्षा में सुधार की बात करने वाले अब देख सकेंगे कि सिर्फ नारे नहीं, नीति भी बदली जा सकती है।

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