UMEED Portal बंद: अब वक्फ प्रॉपर्टी डिटेल अपलोड नहीं होगी, क्यों?

अजमल शाह
अजमल शाह

देशभर की वक्फ प्रॉपर्टीज को डिजिटल लिस्ट में शामिल करने के लिए सरकार ने जून 2025 में UMEED Portal लॉन्च किया था—नाम में UMEED था, लेकिन छह महीने बाद उम्मीदों की बैटरी डाउन हो गई और अपलोडिंग बंद कर दी गई।

सरकार ने पहले ही साफ कर दिया था कि 5 दिसंबर की डेडलाइन आगे नहीं बढ़ेगी, और बिल्कुल वैसा ही हुआ। “डेडलाइन बढ़ेगी या नहीं”—इस सस्पेंस से निकलने का भी अब कोई मौका नहीं।

किरन रिजिजू ने क्यों कहा—No Extension?

मंत्री किरेन रिजिजू ने दो दिन पहले प्रेस से कहा— “सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि छह महीने के बाद कोई तारीख आगे नहीं बढ़ेगी।”

मतलब— कानून बोला और सरकार ने माना, वरना जनता तो extension की उम्मीद में Portal रिफ्रेश करती रहती।

हाँ, राहत थोड़ा-बहुत मिली है। वक्फ प्रॉपर्टी डिटेल न देने पर जो भारी जुर्माना और सजा का प्रावधान था, उससे 3 महीने की मोहलत दे दी गई है।

क्या-क्या अपलोड हुआ और क्या Reject?

सरकार ने बताया, 5 लाख+ वक्फ प्रॉपर्टीज Portal में शामिल की गईं। 2 लाख+ प्रॉपर्टीज Approved हो चुकी हैं। 2,13,000+ डिटेल्स Upload की जा चुकी हैं। और हाँ… 10,869 प्रॉपर्टीज Rejected भी कर दी गईं—कारण वही, “डॉक्यूमेंट में कुछ तो गड़बड़ है” वाली vibe।

अब आगे क्या? Tribunal की शरण!

जिन वक्फ प्रबंधकों ने अब तक रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था, उनके लिए सरकार का सॉल्यूशन है—
 “ट्रिब्यूनल चले जाइए।”

कानून का रास्ता खुला है, पोर्टल का नहीं।

6 महीने की रेस: आखिरी दिनों में अपलोड की बाढ़

मंत्रालय के अनुसार अंतिम दिनों में अपलोड रेट ऐसे बढ़ी जैसे परीक्षा से पहले बच्चे नोट्स कंठस्थ करते हैं। समीक्षा बैठकें + ट्रेनिंग वर्कशॉप्स + हाई लेवल दबाव = तेज़ अपलोडिंग!

सवाल उठता है… सिस्टम में खामी या समय की कमी?

यह फैसला कई सवाल छोड़ गया— क्या 6 महीने में देश की लाखों वक्फ प्रॉपर्टीज वाकई डिजिटल हो सकती थीं? क्या Portal यूज़र्स के हिसाब से Friendly था? या सबकुछ बस टाइम बाउंड लीगल औपचारिकता बनकर रह गया?

सिस्टेमिक सुधारों की जरूरत शायद सबसे ज्यादा यहीं महसूस होती है।

UMEED Portal बंद—लेकिन उम्मीदें अभी खुली हैं!

Portal बंद हो सकता है, लेकिन पारदर्शिता और Digital रिकॉर्ड्स की जरूरत नहीं। अब जिम्मेदारी ट्रिब्यूनल, बोर्ड और सिस्टम की है कि ये प्रक्रिया पारदर्शी, तेज़ और भरोसेमंद हो। जब कानून का नाम “उम्मीद” हो और सिस्टम में “उलझन”, तो व्यंग्य अपने आप निकल आता है।

“बंगाल में बाबरी-स्टाइल बवाल: मस्जिद की नींव से राजनीति की नींव हिल गई!”

Related posts

Leave a Comment