
पुणे की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धव ठाकरे ने शिंदे और भाजपा पर बौछार नहीं, राजनीतिक बम गिराए! बोले – “शिवाजी पार्क में कोई दरवाज़ा नहीं होता, ये कोई बंद कमरे की डील नहीं थी।”
Translation for new-gen netizens – This was not a Netflix political thriller, bhai… ये शिवसेना है!
शिंदे की दशहरा रैली पर तंज: “दरवाज़ा खोलो, जनता खड़ी है!”
उद्धव ठाकरे ने शिंदे की दशहरा रैली पर निशाना साधते हुए कहा कि जब जनता साथ हो, तो दरवाज़े बंद क्यों?
“हमारी रैली बारिश में भी भीगी नहीं, बल्कि भीड़ ने खुद को भिगोकर साबित किया – ठाकरे ब्रांड अब भी ज़िंदा है।”
बीजेपी की ‘सौगात-ए-मोदी’ पर नमकीन कटाक्ष
भाजपा के मुस्लिम परिवारों के लिए चलाई स्कीम पर बोले – “भाजपा करे तो ‘प्यार’, हम करें तो ‘लव जिहाद’?”
साफ बोले – “भाजपा छोड़ना हिंदुत्व छोड़ना नहीं होता, हमारी विचारधारा बाप-दादाओं से चली आ रही है, कोई इंस्टा ट्रेंड नहीं!”
ठाकरे ब्रांड की क्लासिक थ्योरी: “6 साल की उम्र में रैली देखी थी”
“1966 में पहली रैली थी शिवाजी पार्क में। तब मैं 6 साल का था, लेकिन रैली देख ली थी।”
बालासाहेब की बात याद दिलाते हुए बोले – “छोटे हॉल में नहीं, बड़े मैदान में सोचते हैं ठाकरे। तभी तो शिवसेना की सोच भी बड़ी है।”
एनडीए पर वार: “हमारी बहनों को नौकर समझ रखा है क्या?”
“बिहार की बहनों से इतना ही प्यार है तो महाराष्ट्र की भी बहनों को वो ही प्यार दो। हमारी बहनें आपकी ‘पगारी नौकर’ नहीं हैं।”
ये लाइन Google Trends में टॉप पर जा रही है।

रामदास कदम पर कटाक्ष: “गद्दारों को जवाब देना मेरी आदत नहीं”
सीधा बोल पड़े – “रामदास कदम जैसे लोग पार्टी छोड़कर गए, जैसे सामना से निकले पत्रकार! न जवाब देना पसंद है, न याद रखना।”
न्याय 2050 तक?
“कई नेता और पत्रकार चले गए, कोई बात नहीं। मैं जानता हूं, 2050 तक न्याय मिलेगा।”
ये लाइन मीम पेज पर वायरल है – 2050 तक न्याय मिलेगा, तब तक क्या Z+ सुरक्षा Netflix देखेगी?
“राजनीति Open Mic नहीं, मगर Voice जरूरी है”
उद्धव ठाकरे ने जिस अंदाज़ में निशाना साधा, उससे एक बात तो साफ है – ठाकरे ब्रांड न बंद कमरे में बनता है, न भीड़ किराए की होती है। ये दिल से चलता है।