बिहार के वोटर लिस्ट में घुस गइल घुसपैठिया, अउर निकर गइल असली जनता

आलोक सिंह
आलोक सिंह

बिहार में अब चुनाव लोकतंत्र के पर्व ना, घोटाला महोत्सव बन गइल बा। मतदाता पुनरीक्षण अभियान, जेकरा से 2025 के विधानसभा चुनाव के नींव राखल जाई, ऊ खुद ही सवालन के घेरे में बा। ऊपर से चुनाव आयोग बोलेला कि “सब चंगा सी!”, लेकिन नीचे ज़मीन पर लोग पूछ रहल बा — “BLO के दर्शन कब होई?”

मोदी जी, जम्मू-कश्मीर को “अपग्रेड” करिए… प्लान में लद्दाख भी जोड़िए

DM खुद बांट रहलन पर्ची, लेकिन पर्ची पहुंचत कहां बा?

पटना में जिलाधिकारी खुदे घर-घर जा के गणना प्रपत्र बांटत बाड़े — बड़का काम! लेकिन एतना मेहनत के बावजूद मुख्यमंत्री आवास के बगल में जगजीवन राम कॉलोनी तक में एको पर्ची नइखे पहुंचल। कौशल नगर में भी नेता जी लोग के पड़ोसी अबहियो खोजत बाड़े कि “बाबूजी, फॉर्म जमा कहां करब?”

मोतिहारी में 740 वोटर पर 1 BLO! का ऊ सुपरमैन हउअन?

37 लाख वोटर पर सिर्फ 5,000 कर्मचारी! अब समझ ल, एक BLO के झोला में 740 वोटर! अरे भैया, अइसन त बैंक वाला भी कहेला कि “लाइन में लगीं!” ऊपर से सुपरविजन के नाम पर खाली भगवान भरोसे सब कुछ चल रहल बा।

सुप्रीम कोर्ट बोले — दस्तावेज आसान कर, आयोग बोले — और जोड़ दो!

न्यायपालिका कहत रहे कि प्रक्रिया आसान बना, लेकिन आयोग अबहियो 11 गो दस्तावेज मांगत बा, अउर 2003 के वोटर लिस्ट ले आवे के फरमान भी जारी बा। नेपाल से आई बेटी लोग, जे सात साल से कम शादी में बा, ऊ त “घुसपैठिया” घोषित हो गइल। रक्सौल के औरतन के वोट अब भूत बन गइल बा — देखल जाला, पर गिनल नइखे जात!

किशनगंज में फार्म भरत बाड़न, लेकिन पूछे वाला केहू नइखे!

BLO चुप्पी धर के बैठे बाड़न। मीडिया देखत बा, लेकिन BLO कहत बाड़न — “हम केहू से कुछु ना बोलब।” दस्तावेज देखे के त बात छोड़िए दी, हाजिरी लगा के चले जात बाड़े। ई लोकतंत्र ह कि सरकारी ड्रामा?

गया में ‘चाय-पानी’ के नाम पर चलत बा फीस वसूली केंद्र!

गया के BLO साहब वीडियो में पकड़ा गइलन — वोटर के फॉर्म भरावे के नाम पर उगाही करत। जगह? बूथ संख्या 119, उर्दू स्कूल। अब लोग पूछत बा — “ई लोकतंत्र ह कि दलाली?” केस त हो गइल बा, बाकिर बाकी BLO के के देखी?

आधार कार्ड बन गइल ‘घुसपैठिया’ के लाइफलाइन?

सीमांचल इलाका में लोग आधार बनवावे में लागल बा — कुछ सरकारी योजना खातिर, अउर कुछ भारत के ‘अपन देश’ बनावे खातिर। लोग कहे — “साहब, जे घुसपैठिया ह, ऊ त वोट भी दे रहल बा, अउर राशनो ले रहल बा!” का आधार अब फर्जी नागरिकता के ढाल बन गइल बा?

नाम जुड़ावे के मतलब — दौड़-भाग, फॉर्म अउर घूस

अब वोटर लिस्ट ना, एगो मेला बन गइल बा। BLO ना आवे, आउर जब आवे त कहे — “कुछ चाय-पानी दीहीं त काम तेज होई।” आयोग के दावा अब मजाक लग रहल बा, आउर सुप्रीम कोर्ट के सलाह त मानो चाय के कप में डूब गइल।

बिहार में 2025 के चुनाव से पहिले, मतदाता सूची के समीक्षा लोकतंत्र के मजबूती ना, बलुक मजाक बन गइल बा। असली वोटर दर-दर भटकेला, फर्जी घुसपैठिया अपन अधिकार भोगे ला।

तो का ई लोकतंत्र के सुरक्षा बा, या लोकतंत्र के सुपारी दे दीहल गइल बा?

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