“गरीबों की हाय लगेगी!” — झुग्गी तोड़ने के विरोध में हिरासत में गईं आतिशी

शकील अहमद सैफीमंगलवार की सुबह दिल्ली के कालकाजी इलाके में उस समय अफरा-तफरी मच गई जब झुग्गी तोड़ने के विरोध में प्रदर्शन कर रही दिल्ली की पूर्व मंत्री और आप नेता आतिशी मार्लेना को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया

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आतिशी, जो खुद कालकाजी की विधायक हैं, भूमिहीन कैंप में चल रही झुग्गियों की तोड़फोड़ के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल थीं। उन्होंने झुग्गीवासियों की आवाज़ उठाने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही देर में पुलिस ने उन्हें घेरकर गाड़ी में बैठा लिया।

“गरीबों की हाय लगेगी बीजेपी को” — आतिशी का कड़ा बयान

पुलिस वाहन में बैठने से पहले आतिशी ने कैमरे के सामने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:

“बीजेपी और रेखा गुप्ता जी को झुग्गी वालों की हाय लगेगी। ये गरीब लोग जिनके पास सिर छुपाने को जगह नहीं है, उनके घर उजाड़े जा रहे हैं। बीजेपी कभी वापस नहीं आएगी।”

पुलिसिया रवैये पर उठे सवाल

प्रदर्शन के दौरान मौजूद आम लोगों और कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को बर्बरता से हटाया, डंडे बरसाए और कई लोगों को हिरासत में लिया गया।
आतिशी ने आरोप लगाया कि:

“ये लोग शांतिपूर्वक बैठकर अपने अधिकार की बात कर रहे थे। नारे भी नहीं लगाए थे, लेकिन पुलिस ने इन्हें पीटा और खींचकर गाड़ियों में डाला।”

झुग्गीवासी क्या कहते हैं?

कालकाजी भूमिहीन कैंप में रहने वाले कई लोगों ने बताया कि उन्हें किसी वैकल्पिक व्यवस्था के बिना हटाया जा रहा है।
एक महिला ने बताया:

“कल मेरा घर तोड़ देंगे, और आज हमारी आवाज़ उठाने आए नेता को भी जेल ले गए। हम कहां जाएं?”

कोर्ट के आदेश या राजनीति?

अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई अदालत के आदेश के तहत की जा रही है, लेकिन सवाल ये उठता है कि:

क्या बिना पुनर्वास योजना के इन परिवारों को सड़क पर फेंक देना न्याय है?

सिस्टम पर उठते सवाल

  • क्या शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार अब छिन गया है?

  • क्या बेघरों को बचाने की कोशिश करना अपराध बन गया है?

  • झुग्गी तोड़ने से पहले सरकार ने कौन सी वैकल्पिक व्यवस्था की?

जहां एक ओर सरकारें “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देती हैं, वहीं गरीबों के घर तोड़े जा रहे हैं, और जो उनका पक्ष ले रहे हैं, उन्हें हिरासत में लिया जा रहा है

“दिल्ली के वोट बैंक की रीढ़ कहलाने वाली झुग्गियां, अब राजनीतिक घमासान का केंद्र बन गई हैं। लेकिन असली सवाल यही है — इन बेघरों की आवाज़ कौन सुनेगा?”

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