
बिहार में चुनावी पारा बढ़ रहा है और साथ ही सियासी ड्रामा भी। ताज़ा एपिसोड में लीड रोल निभा रहे हैं – नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, जो दावा कर रहे हैं कि उनका नाम मतदाता सूची से गायब हो गया है। लेकिन ‘सीक्वल’ में एंट्री मारी डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने, जिन्होंने पूरे डॉक्युमेंट्स लहराते हुए कहा:
“नाम भी है, फोटो भी है… और पते का पूरा पता भी है। अब अगर तेजस्वी जी खुद को पहचान नहीं पा रहे, तो उसमें हम क्या करें?”
सम्राट चौधरी का जवाब: ‘डेटा मत उड़ाओ, दस्तावेज़ देखो!’
सम्राट चौधरी ने प्रेस को दिखाया कि 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में तेजस्वी यादव का नाम क्रम संख्या 416 पर दर्ज है — और हां, फोटो सहित। मतदान केंद्र? दीघा विधानसभा क्षेत्र का बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पुस्तकालय भवन।
“नाम भी है, पता भी है, फिर भी ‘मैं लापता हूं’ स्टाइल बयान देना क्या लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है या YouTube कंटेंट?” – सम्राट का व्यंग्य
तेजस्वी की योग्यता पर कटाक्ष: ‘नाम नहीं खोज सकते, CM बनने चले हैं!’
सम्राट ने कहा:
“जो नेता वोटर लिस्ट में अपना नाम नहीं ढूंढ सकते, उनसे प्रशासनिक दक्षता की उम्मीद करना खुद लोकतंत्र का अपमान है।”
तेजस्वी यादव के इस बयान को सम्राट ने ‘भ्रम फैलाने की साजिश’ करार दिया। बोले: “ऐसे झूठ फैलाकर संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करना राजनीति नहीं, सनसनी फैलाना है।”
चुनाव आयोग को लेकर सियासी छींटाकशी: ‘EC कोई ATM नहीं’
तेजस्वी के आरोपों को सम्राट ने सीधे चुनाव आयोग पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा:
“मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण एक संविधान सम्मत प्रक्रिया है, न कि Twitter Poll. इसमें पारदर्शिता और प्रमाण दोनों होते हैं, अफवाहें नहीं।”
और फिर व्यंग्य करते हुए बोले:
“चुनाव आयोग को ATM समझकर जब चाहो, आरोप निकाल लेना – ये आदत अब बंद होनी चाहिए।”
लोकतांत्रिक मूल्यों पर अपील: ‘डाटा बोलता है, ड्रामा नहीं’
सम्राट चौधरी ने सभी दलों को चेताया कि चुनावी प्रक्रिया में अविश्वास की कहानी गढ़ने से सिर्फ जनता भ्रमित होती है।
“राजनीति में अगर हर बात को प्रोपेगेंडा बना दिया गया, तो जनता को सच्चाई तक पहुँचने में ज्यादा वक्त लगेगा। इसलिए जो तथ्य है, वही बताएं – और लोकतंत्र को मज़ाक न बनाएं।”
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बिहार की सियासत में सच और शो के बीच की लाइन बहुत पतली है। तेजस्वी यादव का ये बयान — ‘मेरा नाम हट गया’ — एक राजनीतिक झटका कम, डिजिटल कंटेंट ज्यादा लग रहा है।
सम्राट चौधरी का जवाब भी किसी कोर्टरूम ड्रामा से कम नहीं था — फैक्ट्स, डॉक्युमेंट्स, तंज और टाइमिंग सब मिला-जुलाकर एक मजबूत पलटवार।
बिहार में चुनावी लड़ाई अब सिर्फ सीटों की नहीं, स्क्रीनशॉट्स की भी है!
मतदाता सूची अब WhatsApp फॉरवर्ड नहीं, जिसे कोई भी छेड़ दे। और राजनीति अब सिर्फ़ नारेबाज़ी से नहीं, डॉक्युमेंटेशन से लड़ी जाती है। जनता को चाहिए सच, नेता दे रहे हैं सस्पेंस।
आख़िर में सवाल ये है:
“जब नाम और फोटो मौजूद हैं, तो ये ‘नाम-गुम’ राजनीति किसके इशारे पर चल रही है?”
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