
चुनाव आयोग की ओर से “स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न ऑफ़ इलेक्टोरल रोल्स” की घोषणा हुई नहीं कि बिहार की राजनीति में हलचल तेज़ हो गई। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इसे सीधे “साजिश नंबर 420” करार दिया और नीतीश कुमार पर जमकर तीर चलाए।
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अब जो फरवरी में वोटर लिस्ट आई थी, उसे साइड कर दिया गया है। आठ करोड़ बिहारियों को कह दिया गया – ‘तुम्हारा नाम अभी लिस्ट में नहीं है, फिर से Try करो!’”
तेजस्वी का आरोप – “ये सब ग़रीबों को हटाने का प्लान है!”
तेजस्वी यादव का मानना है कि ये सबकुछ जानबूझकर हो रहा है — और उसमें प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की “डायरेक्ट एंट्री” है। ये एक प्लानिंग के तहत किया जा रहा है ताकि ग़रीब, मज़दूर और अल्पसंख्यक वोटर लिस्ट से गायब कर दिए जाएं। चुनाव से दो महीने पहले ये चालबाज़ी क्यों?
उनका अंदाज़ लगभग वैसा ही था जैसे कोई स्कूल के प्रिंसिपल को कहे, पेपर से पहले सिलेबस ही बदल दिया गया, ये तो नाइंसाफी है!
चुनाव आयोग क्या कह रहा है?
चुनाव आयोग कह रहा है – “हम तो बस हर घर जाकर सत्यापन कर रहे हैं ताकि कोई भी पात्र नागरिक छूटे नहीं।”
सत्यापन अच्छा है, लेकिन तेजस्वी जैसे नेता मानते हैं कि “सत्यापित” से ज्यादा ये सब “सियासी शुद्धिकरण” जैसा लग रहा है।
दस्तावेज़ लाओ…जो शायद आपके पास न हों!
विपक्ष का सबसे बड़ा डर यही है – “नए रजिस्ट्रेशन में ऐसे दस्तावेज़ मांगे जाएंगे जो आम लोगों, ख़ासकर ग़रीब तबकों के पास शायद हों ही न।”
यानि, “पहले अधिकार छीनो, फिर प्रमाण मांगो!” वाली रणनीति?
क्या सचमुच 25 दिन में आठ करोड़ वोटर बनाना मुमकिन है?
तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया –क्या यह संभव है कि आठ करोड़ वोटर लिस्ट को सिर्फ 25 दिनों में दोबारा तैयार किया जा सके?
ये सवाल वैसा ही है जैसे – “क्या बिना नींद के 3 दिन में UPSC क्लियर कर सकते हो?”
वोट की क्लीनिंग या वोट की चिकनिंग?
बिहार की राजनीति में हर क़दम पर सवाल उठना आम है। लेकिन जब बात वोटर लिस्ट की “गहन सफाई” की हो और चुनाव नज़दीक हो — तो सियासी पार्टियां ये “क्लीनिंग” को “साजिशन स्क्रीनिंग” मानने लगती हैं।
अब जनता को तय करना है ये वोटर अपडेट है या लोकतंत्र को रीसेट करने की कोशिश?
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