1970 में चेतन आनंद ने जो किया, उसे आज की पीढ़ी “Cinematic Audacity” कहेगी। पूरी फिल्म शायरी में बोलती है! नहीं, मतलब सच में — हर किरदार, हर डायलॉग, हर झगड़ा तक, सबकुछ तुकबंदी में। और इस प्रयोग को नाकाम नहीं, मास्टरपीस कहा गया। अखिलेश केदारनाथ बना बैठे, शंकराचार्य बन बैठे क्या-अब काबा भी बनवायेंगे ? राजकुमार: एक्टर नहीं, चलता-फिरता उर्दू शेर अगर आपको लगता है कि आजकल के हीरो स्टाइलिश हैं, तो ज़रा राजकुमार को देख लीजिए – नज़रों से तलवार चलाते हैं और जुबान से इश्क। उनके डायलॉग…
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