कभी लखनऊ के सरकारी डिग्री कॉलेजों में दाख़िला लेना ऐसा लगता था जैसे UPSC पास कर लिया हो—अब वही कॉलेज “पहले आओ, सीट पाओ” के बोर्ड टांगकर बैठे हैं। जुलाई की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन मेरिट की चमक से दूर सरकारी कॉलेजों की क्लासरूम अब भी सूनी हैं। नतीजा? अब मेरिट, काउंसलिंग और तमाम संस्कारों को किनारे रखकर सीधा दाख़िला देने का नारा बुलंद किया जा रहा है। ग़ज़ा संघर्ष विराम पर क़तर में हमास-इसराइल वार्ता, संशोधन पर टकराव सीटें भरी नहीं, तो शराफत से एडमिशन दे दो! लखनऊ…
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