बेटी की माहवारी और बाप का फर्ज़: चुप्पी नहीं, समझदारी की ज़रूरत है

लेखक : शिखा मनचंदा जब बेटी बड़ी होती है, तो बाप को भी बड़ा बनना पड़ता है — सोच में, समझ में और जिम्मेदारी में। भारत जैसे समाज में माहवारी (Periods) आज भी एक ‘सिर्फ़ औरतों का विषय’ माना जाता है। लेकिन अगर बाप बेटी का पहला हीरो होता है, तो ज़रूरी है कि वो उसकी ज़िंदगी के इस सबसे अहम मोड़ पर भी उसका हमसफर बने। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने पीएम मोदी से की बात, पहलगाम आतंकी हमले की निंदा माहवारी क्या है? माहवारी एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया…

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