बेटी की माहवारी और बाप का फर्ज़: चुप्पी नहीं, समझदारी की ज़रूरत है

लेखक : शिखा मनचंदा

जब बेटी बड़ी होती है, तो बाप को भी बड़ा बनना पड़ता है — सोच में, समझ में और जिम्मेदारी में। भारत जैसे समाज में माहवारी (Periods) आज भी एक ‘सिर्फ़ औरतों का विषय’ माना जाता है। लेकिन अगर बाप बेटी का पहला हीरो होता है, तो ज़रूरी है कि वो उसकी ज़िंदगी के इस सबसे अहम मोड़ पर भी उसका हमसफर बने।

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माहवारी क्या है?

माहवारी एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, जो हर किशोरी लड़की में किशोरावस्था (Puberty) के बाद शुरू होती है। यह हर महीने एक निश्चित अंतराल पर होती है, जिससे यह संकेत मिलता है कि लड़की की प्रजनन क्षमता शुरू हो गई है।

बाप का फर्ज़ क्या है?

चुप्पी नहीं, बातचीत करें

बेटी को माहवारी के समय डर, शर्म और संकोच न हो — इसके लिए बाप को पहल करनी होगी। सीधा बात करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन संकेतों और सहयोग से भी बहुत कुछ कहा जा सकता है।

शर्म को समझदारी में बदलें

माहवारी को ‘गंदा’, ‘छुपाने वाला’ या ‘पाप’ समझना पुरानी मानसिकता है। पिता को चाहिए कि वो खुद भी इन धारणाओं को तोड़ें और बेटी को भी खुलकर बोलने दें।

साधन और सुविधा दें

पैड्स, सैनिटरी नैपकिन, पीरियड पैंटी, या गर्म पानी की बोतल — जो भी सुविधा बेटी को चाहिए, बिना झिझक उसे उपलब्ध कराएं। ये ‘माँ का काम’ नहीं, ये ‘माँ-बाप दोनों की ज़िम्मेदारी’ है।

स्कूल-ऑफिस से छुट्टी की समझदारी

अगर पीरियड के दिनों में बेटी को स्कूल जाने में परेशानी हो, तो बाप खुद आगे बढ़कर छुट्टी दिलवाए। यह समर्थन बेटी को आत्मविश्वास देता है।

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अपनी सोच को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बदलें

अगर आप अपने बेटे को भी माहवारी के बारे में समझाते हैं, तो आप अगली पीढ़ी को ज्यादा संवेदनशील और सम्मानजनक बना रहे हैं।

भावनात्मक जुड़ाव भी ज़रूरी है

“बेटी का पहला रक्त उसे महिला बनाता है, लेकिन बाप का पहला समर्थन उसे आत्मनिर्भर बनाता है।”

माहवारी से जुड़ी भ्रांतियाँ और सच्चाई

भ्रांति सच्चाई
पीरियड्स के दौरान लड़की अशुद्ध होती है यह पूरी तरह से झूठ है, माहवारी एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है
पीरियड्स में रसोई या पूजा में जाना वर्जित है यह सामाजिक धारणा है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है
पीरियड्स दर्द सिर्फ बहाना है कई लड़कियों को गंभीर ऐंठन और कमजोरी होती है, इसे समझना चाहिए

समाज में बदलाव की शुरुआत घर से होती है

अगर एक बाप खुले मन से बेटी की माहवारी को समझेगा, तो समाज में बड़ा बदलाव संभव है। यही बदलाव लड़कियों को आत्मविश्वास, हक और समानता की राह पर लेकर जाएगा।

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