भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर जो सस्पेंस बना हुआ है, वो किसी बॉलीवुड थ्रिलर से कम नहीं है। नायक कौन होगा, यह तय करना भाजपा के लिए “मिशन इंपॉसिबल” बनता जा रहा है। संसद का सत्र हो, बूथ प्रभारी हों, या संगठनात्मक चुनाव—हर चीज़ बस चुनाव की तारीख को आगे खिसकाने का बहाना बन चुकी है। संगठन चुनाव: आधे हुए, बाकी आधे बहाने बन गए! पहले कहा गया: “आधे राज्यों में संगठन चुनाव होंगे, फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलेगा।”अब कहा जा रहा है: “साढ़े सात लाख बूथ प्रभारी…
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