वसीका कोई आम पेंशन नहीं थी। ये वो “शाही इनकम” थी जो अवध के नवाबों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को दिए कर्ज के बदले तय करवाई थी — ब्याज की शक्ल में पीढ़ी दर पीढ़ी वंशजों को पेंशन मिलती रहेगी। लेकिन अब ज़माना कुछ ऐसा बदला है कि 130 रुपये हर 13वें महीने मिलते हैं, और 9.70 पैसे की मासिक पेंशन लेने के लिए भी सैकड़ों रुपये लखनऊ आने में खर्च करने पड़ते हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी गई, अंग्रेज गए – लेकिन वसीका अभी भी जारी है! 1857 के गदर…
Read More