
जब हर फोन में “न्यायपालिका” खुली हो और हर व्यक्ति “जज साहब” बना बैठा हो, तब असली सुप्रीम कोर्ट को क्यों न बोलना पड़े?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच – न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एजी विश्वनाथन – ने सोशल मीडिया पर बढ़ती हेट स्पीच को लेकर गहरी चिंता जताई। कोर्ट का कहना था, “अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अब कुछ भी कह देने का चलन खतरनाक हो चला है।”
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सोशल मीडिया: गाली से लाइक तक का सफर!
सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली और शिकायतकर्ता वजहात खान की केस सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने दो टूक कहा:
“लोगों को ये समझना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य क्या है। राज्य को हर बार बीच में कूदना न पड़े।”
यानी अब ट्वीट करने से पहले सोचिए – अगला ट्रेंड “#जेलमेंसेल्फी” न बन जाए।
वजहात खान का केस:
“शिकायत की, और खुद फंस गए!”
वजाहत खान, जिनके ट्वीट्स ने तूफान मचाया, अब खुद सफाई देते घूम रहे हैं। उनके वकील ने कहा कि वे पहले ही माफ़ी मांग चुके हैं, लेकिन हर ट्वीट पर अलग-अलग FIR और जेल की टिकट क्यों मिल रही है?
कोर्ट का सीधा सवाल – “हर बार नई FIR? तो क्या हर ट्वीट के साथ नया Tihar Tour पैकेज भी चलेगा?”
कोर्ट की ज्ञानवाणी:
“एक बार इंटरनेट पर गया तो अमर हो गया – पोस्ट डिलीट करने से कुछ नहीं होगा!”
सोशल मीडिया के ‘नफ़रत रत्न’ समझ लें कि ऑनलाइन कुछ भी डालने का मतलब है – खुद के लिए ‘डिजिटल बम’ छोड़ आना। कोर्ट ने कहा, “अदालतें तबाह हो रही हैं, क्योंकि लोग ऑनलाइन तुच्छ बातों को महायुद्ध बना रहे हैं।”
जनता के लिए सन्देश:
“कृपया लाइक-शेयर से पहले विचार करें, नहीं तो अगली वायरल चीज़ आपका समन हो सकता है!”
अब कोर्ट ने आम नागरिकों से अपील की है कि वो हेट स्पीच से जुड़े पोस्ट्स को लाइक, शेयर और प्रमोट न करें। क्योंकि अगली बार आपके मोबाइल की नोटिफिकेशन ‘न्यायिक सम्मन’ हो सकती है।
“सोशल मीडिया ने सबको स्पीकर बना दिया है, लेकिन दिमाग ऑन करना अब भी मैनुअल है!”
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