
SIR (Systematic Investigation of Voters) को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत में गर्मागरम बहस हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि “SIR वोटर फ्रेंडली है, ये किसी के खिलाफ नहीं!” — साथ में ये भी कहा, “बिहार को बेवजह बदनाम मत करो, वहां के लोग IAS-IPS बनाने में टॉप पर हैं!”
जस्टिस बागची की चाय में नींबू नहीं, लॉजिक था!
सुनवाई के दौरान वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में चाय के साथ कड़क तर्क रखे:
“बिहार में जिन 11 दस्तावेज़ों की मांग SIR करता है, वो आम लोगों के पास नहीं हैं। पासपोर्ट सिर्फ 1-2% लोगों के पास है, प्रॉपर्टी डाक्यूमेंट्स तो उनके पास होंगे जिनके पास ज़मीन है।”
इस पर जस्टिस बागची ने बड़ी शांति से जवाब दिया:
“हमें समझ आ गया कि आप आधार के खिलाफ क्यों हैं। लेकिन बाकी दस्तावेज़ों की वेरायटी असल में वोटरों के लिए मददगार है।”
“आधार है पर काम का नहीं?” – सिंघवी का सवालिया हमला
सिंघवी बोले – “आधार सबके पास है लेकिन उसे ही स्वीकार नहीं किया गया। वोटर ID सबसे मजबूत पहचान है, फिर उसे लिस्ट से क्यों हटाया गया?”
चुनाव आयोग को भी निशाने पर लिया गया:
“चुनाव से ऐन पहले SIR लाकर ये पूरा प्रोसेस चुनाव को प्रभावित करने जैसा लगता है। ये बाद में भी हो सकता था, पूरा साल है न!”
“बिहारियों को ग़लत मत समझो” – जस्टिस सूर्यकांत का ठहाका
जब सिंघवी ने बिहार की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की बात की, जस्टिस सूर्यकांत ने तुरंत टोका:

“बिहार को इस तरह पेश न करें। यहां से सबसे ज़्यादा IAS, IPS, IRS बनते हैं। वहां की युवा पीढ़ी बेहद समर्पित है।”
मतलब साफ था – प्रतिभा को गरीबी से मत तौलो। सटायर में कहें तो:
“Bihar को lightly लोगे तो फिर UPSC में toppers कौन देगा?”
अब सवाल उठता है – दस्तावेज़ या लोकतंत्र?
SIR कह रहा है – “तुम्हारे पास डॉक्युमेंट नहीं है तो मेरी क्या गलती?”
जनता कह रही है – “तुम डॉक्युमेंट मांगते क्यों हो, जब हम वोटर हैं ही!”
सुप्रीम कोर्ट कह रही है – “मतदाता फ्रेंडली सोचो, हर चीज़ को ‘साजिश’ मत बनाओ।”
क्या SIR की परीक्षा पास करेगा लोकतंत्र?
अब देखना ये होगा कि कोर्ट का फाइनल फैसला क्या होता है। लेकिन फिलहाल इतना तय है – “SIR पर नहीं, नजर अपने सिस्टम पर डालिए। वोटर के अधिकार, दस्तावेज़ से बड़े हैं!”
अगर आप भी उन लोगों में हैं जो वोट देने जाते वक्त सिर्फ पहचान नहीं, पहचान की कद्र भी चाहते हैं, तो ये बहस आपके लिए है।
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