
11 जनवरी 1944 को ब्रिटिश भारत के नामरा गाँव (अब झारखंड) में जन्मे शिबू सोरेन भारतीय राजनीति के उन चेहरों में हैं जिनका नाम संघर्ष, जनांदोलन और झारखंड राज्य निर्माण से जुड़ा हुआ है। उन्हें झारखंड के आदिवासी समाज का ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘जनजातीय मार्गदर्शक’ कहा जाता है।
शुरुआती जीवन और संघर्ष
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पिता शोभराम सोरेन की हत्या के बाद शिबू का जीवन संघर्षमय रहा।
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खेती के काम में हाथ बंटाते हुए उन्होंने आदिवासियों की ज़मीन बचाने के लिए आवाज़ उठानी शुरू की।
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1970 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की।
चिरूडीह कांड और पहली बड़ी राजनीतिक हलचल
23 जनवरी 1975, चिरूडीह गांव में कथित तौर पर बाहरी लोगों (दिकू) के ख़िलाफ़ आदिवासी सभा का नेतृत्व करते हुए शिबू सोरेन विवाद में आ गए।
इस हिंसक भीड़ में 11 लोगों की मौत हो गई, जिसके लिए उन पर हत्या का आरोप लगा।
यह घटना उन्हें आजीवन विवादों में बनाए रखने वाली बनी रही, लेकिन उन्होंने इसे जनसंघर्ष की अग्नि परीक्षा बताया।
चुनावी राजनीति में प्रवेश
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1977: पहला लोकसभा चुनाव हारे
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1980: पहली बार दुमका से लोकसभा पहुंचे
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फिर 1986, 1989, 1991, 1996, 2002–2019 तक संसद का हिस्सा बने
कोयला मंत्री से इस्तीफे तक
2004 में मनमोहन सिंह सरकार में वे कोयला मंत्री बने। लेकिन चिरूडीह कांड के चलते गिरफ्तारी वारंट जारी होने पर उन्हें 24 जुलाई 2004 को मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
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बाद में वे 2006 में फिर मंत्री बने, पर इस्तीफे की तलवार हमेशा लटकी रही।
मुख्यमंत्री बने, फिर गिरे… फिर बने
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन हर बार बहुमत साबित करने में नाकामी ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया:
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मार्च 2005 – मार्च 2005 (10 दिन)
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अगस्त 2008 – जनवरी 2009
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दिसंबर 2009 – मई 2010
“झारखंड में शिबू सोरेन का हर मुख्यमंत्री काल एक राजनीतिक थ्रिलर रहा है।”
परिवार और राजनीतिक विरासत
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पत्नी: रूपी सोरेन
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बेटे:
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हेमंत सोरेन (वर्तमान मुख्यमंत्री)
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दुर्गा सोरेन, बसंत सोरेन
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बेटी: अंजलि सोरेन
हेमंत सोरेन अब पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
राज्यसभा में फिर वापसी
22 जून 2020 को वे झारखंड से राज्यसभा सांसद बने और संसद में एक बार फिर जनजातीय आवाज़ को रखने लगे।
दिशोम गुरु की गाथा
शिबू सोरेन की कहानी एक साधारण किसान के बेटे से झारखंड निर्माण के नायक तक का सफर है। विवादों के बीच भी उनका जनाधार बना रहा क्योंकि उन्होंने सत्ता नहीं, संघर्ष से पहचान बनाई।
दिशोम गुरु अब नहीं रहे – शिबू सोरेन के निधन से झारखंड में शोक की लहर