
22 साल की लॉ स्टूडेंट और इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली को आखिरकार कलकत्ता उच्च न्यायालय से अंतरिम ज़मानत मिल गई है।
मामला था “ऑपरेशन सिंदूर” पर एक धार्मिक रूप से संवेदनशील पोस्ट, जिसने इंटरनेट से सीधे कोर्टरूम की राह पकड़ ली।
गांधी बिक रहे हैं, सवाल यह है कि खरीदेगा कौन? राहुल जाएंगे खरीदने!!
आपत्तिजनक बोलने पर गिरफ्तारी – पर ‘फॉलोअर्स’ कम नहीं हुए!
शर्मिष्ठा पर आरोप है कि उन्होंने बॉलीवुड की ‘चुप्पी’ पर कटाक्ष करते हुए एक धर्म विशेष पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी।
कोलकाता पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की, और उन्हें गुरुग्राम से गिरफ्तार कर ट्रांजिट रिमांड पर कोलकाता लाया गया।
अब चाहे इंसाफ मिलने में देरी हो जाए, लेकिन इंफ्लुएंसर का वायरल वीडियो सिस्टम से तेज़ भागता है।
कलकत्ता हाईकोर्ट की ‘लॉजिक बनाम लॉज’ की क्लास
पहले कोर्ट ने ज़मानत ठुकरा दी थी, यह कहते हुए कि –
“बोलने की आज़ादी के नाम पर दूसरों की भावनाओं को आहत करने का अधिकार नहीं है।“
लेकिन फिर अदालत ने बैलेंस बनाए रखने के नाम पर अंतरिम ज़मानत मंजूर कर दी।
शायद जज साहब ने इंस्टा की रील्स देखकर सोचा – “लड़की कंटेंट अच्छा बनाती है, केस लंबा खींचेगा तो रील्स भी लंबी हो जाएंगी!”
ऑपरेशन सिंदूर या ऑपरेशन सेंसरशिप?
ये मामला अब सिर्फ एक इंस्टा वीडियो का नहीं, “बोलने की सीमा बनाम भावनाओं की लक्ष्मण रेखा” का बन गया है।
जहां एक ओर लोग बोलने की आज़ादी के पक्ष में हैं, वहीं दूसरी ओर धर्म की दीवारें अक्सर स्क्रीन पर ‘रील’ होकर असली जेल में पहुंचा देती हैं।
सोशल मीडिया पर चल रही है ‘विचारों की गिरफ्तारी’ की लाइव स्टोरी
जहां एक ओर प्लेटफॉर्म ‘कंटेंट क्रिएशन’ को बढ़ावा देते हैं, वहीं आज की तारीख में आपके ‘विचार’ ही आपका वारंट बन सकते हैं।
शर्मिष्ठा का मामला सोशल मीडिया यूज़र्स के लिए एक वॉर्निंग है –
“सोच समझ के पोस्ट करिए, क्योंकि जेल का वाई-फाई स्लो होता है।”
कंटेंट के कंट्रोल और कंट्रोवर्सी का कॉकटेल
शर्मिष्ठा पनोली को मिली अंतरिम राहत सिर्फ कानून की देन नहीं, ये एक रिमाइंडर है कि सोशल मीडिया और कानून अब पड़ोसी नहीं, हाउस अरेस्ट के रूममेट बन चुके हैं।