
कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार निषाद ने अपनी सियासी गदा फिर घुमा दी है — और इस बार निशाना है खुद BJP, वो भी बिना लपेटे, बिना फिल्टर के!
“हमने मछुआरों की लड़ाई शुरू की थी, बीजेपी बाद में आई!”
संजय निषाद ने बताया कि निषाद पार्टी की जड़ें गोरखपुर से हैं, लेकिन आज वही शहर कुछ नेताओं के कारण बदनाम हो रहा है। बीजेपी को आड़े हाथ लेते हुए बोले:
“अगर बीजेपी को लगता है कि हमसे फायदा नहीं, तो गठबंधन तोड़ दे। हमें कोई ऐतराज़ नहीं!”
वाह! ऐसे बोल कम ही सुनाई देते हैं सत्ता में बैठे नेता की ज़ुबान से।
“इम्पोर्टेड नेताओं से BJP को होशियार रहना चाहिए!”
संजय निषाद का इशारा सीधा उन नेताओं की ओर था जो सपा-बसपा छोड़कर बीजेपी में कूदे और अब खुद को निषाद समाज का तारणहार मान बैठे हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा:
“जिन्होंने टिकट तक नहीं पाया, वे आरक्षण के ठेकेदार बन रहे हैं। कभी कुंभ, कभी सम्मेलन… नतीजा? ज़ीरो बट्टा सन्नाटा।”
“403 में से 403 सीटें भी निषाद जीत जाएं तो हम खुश हैं!”
कितनी उदार सोच है ना? बस एक शर्त — टिकट मिले तो पहले भरोसा दिखाओ!
“जो टिकट दिलवाने की बात कर रहे हैं, क्या बीजेपी से 2027 की गारंटी लेकर आए हैं?”
“ये जीत सबकी साझी है, सिर्फ बीजेपी की नहीं”
राजभर, अपना दल और RLD का नाम लेते हुए निषाद बोले:
“2022 में जब RLD और राजभर भाई सपा में गए, उनकी संख्या 45 से बढ़कर 125 हो गई थी। मतलब गठबंधन काम करता है, बशर्ते भरोसा हो!”
“गठबंधन निभाओ या साफ कह दो – हम तैयार हैं!”
इस बयान में जितना दर्द था, उतना ही चुनौती भी।
“अगर भरोसा है तो साथ चलिए, वरना साफ कहिए – निषाद पार्टी तैयार है!”
“प्रवीण की हार? पहले बीजेपी अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करे!”
“हर बार हमसे क्यों पूछते हैं? जिनके पास रिपोर्ट है, वही जवाब दें!”
“अगर आरक्षण चाहिए, तो चलो विधानसभा का घेराव करो!”
संजय निषाद ने चैलेंज किया:
“अगर वाकई दिल से निषाद समाज की बात है, तो इम्पोर्टेड और देसी नेता मिलकर आरक्षण पर घेराव करें। मैं पीछे-पीछे चलूंगा।”
वाह जी! पीछे चलने का वादा, पर नेतृत्व की लाठी हाथ में ही!
डॉ. संजय निषाद ने ना सिर्फ BJP को आईना दिखाया, बल्कि सहयोगी दलों की सियासी हैसियत भी याद दिलाई। आने वाले महीनों में यूपी की राजनीति में ये बयान कितनी बिजली गिराएगा, यह देखना बाकी है।