संगम रेट्रो रिव्यू: जब प्यार, दोस्ती और विदेश यात्रा तीन घंटे में फिट हो गए

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

राज कपूर की ‘संगम’ (1964) एक ऐसी फिल्म है जिसमें दोस्ती इतनी पवित्र थी कि अगर WhatsApp होता, तो शायद रणवीर (राज कपूर) का “Seen” भी एक इमोशनल सीन बन जाता।
फिल्म में ट्रायंगल लव स्टोरी है, लेकिन प्लॉट इतना फैला हुआ कि आपको लगता है – “ये फिल्म नहीं, इमोशंस की रेलवे लाइन है, जिसमें हर स्टेशन पर आंसू हैं।”

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लव लेटर, जो आज भी इंटरनेट स्पीड से तेज़ पहुंचता है!

राजेंद्र कुमार का किरदार जब प्यार छुपाता है और वैजयंती माला से दूरी बनाता है, तब पोस्टमैन की नौकरी को आज भी ऑस्कर मिलना चाहिए।

“संगम के पोस्टल सिस्टम ने हमें ये सिखाया – सच्चा प्यार कभी DP देखकर नहीं होता, वो तो चिट्ठियों से पनपता है!”

विदेश यात्रा: पहला बॉलीवुड टूर पैकेज!

राज कपूर ने संगम में वो कर दिखाया जो आज भी बॉलीवुड नहीं कर पाता – यूरोप ट्रिप। स्विट्ज़रलैंड की वादियों में रोमांस, पैरिस में जुल्फें और बैंकॉक में भावनाएं!

“यानी संगम वो फिल्म है जिसमें वीज़ा, इमिग्रेशन और इमोशन – सब साथ चलते हैं।”

“जब बलिदान बड़ा हो, तो स्क्रिप्ट छोटी नहीं हो सकती”

फिल्म का एंड ऐसा है कि आपको लगता है, दोस्ती और मोहब्बत के बीच अगर कोई तीसरा है, तो वो है कुर्बानी। और राज कपूर उस कुर्बानी को ऐसे निभाते हैं जैसे स्क्रिप्ट writer को Oscar की उम्मीद थी।

जब शंकर-जयकिशन का हर गाना Dil Se Dil तक था

“यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर”, “दोस्त दोस्त ना रहा”, और “हर दिल जो प्यार करेगा” – ये सिर्फ गाने नहीं, 60 के दशक की भावनाओं का पक्का प्रमाण पत्र हैं।

संगम वो फिल्म है जो आज भी पुराने कपड़े पहनकर दिल छू जाती है।
राज कपूर का विज़न, अभिनय की त्रिमूर्ति, और इमोशंस का ओवरडोज़ – इस फिल्म को बनाते हैं 60 के दशक का ‘OTT Blockbuster’।
अगर आपने आज तक संगम नहीं देखी, तो यकीन मानिए, आपकी ‘रेट्रो लव लाइफ’ अधूरी है।

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