भगवा आतंकवाद का जिन्न फिर बोतल से बाहर! सियासी तापमान हाई

अजमल शाह
अजमल शाह

31 जुलाई 2025, सुबह 11:15 बजे मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में जैसे ही कोर्ट का फ़ैसला आया — देश की राजनीति में भूचाल आ गया। और ठीक एक घंटे के अंदर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा:

“आतंकवाद भगवा न कभी था, ना है, ना कभी रहेगा!”

बस फिर क्या था — भगवा आतंकवाद पर एक बार फिर डिबेट का रिमिक्स शुरू हो गया।

फडणवीस और शाह: भगवा को क्लीन चिट देने की मुहिम?

एक दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद में गरजे थे:

“हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकते।”

शाह के इस बयान की गर्माहट अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि कोर्ट के फैसले ने सियासी माहौल को और गरमा दिया।

भगवा आतंकवाद शब्द की उत्पत्ति: युपीए एरा का आइडिया?

इस शब्द का चलन तब शुरू हुआ जब 2008 मालेगांव बम ब्लास्ट की जांच शुरू हुई। कांग्रेस के दौर में एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की जांच की दिशा जैसे ही हिंदुत्व संगठनों की ओर गई — ‘भगवा आतंकवाद’ मीडिया और राजनीति का चर्चित टर्म बन गया।

पी. चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे और दिग्विजय सिंह जैसे नेता इस शब्द के सबसे मुखर उपयोगकर्ता रहे।

ATS vs NIA: जांच एजेंसियों पर क्यों उठे सवाल?

मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस, अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद — इन सभी मामलों में हिंदुत्व संगठनों से जुड़े नामों की एंट्री हुई, लेकिन अंत में अधिकतर अभियुक्त बरी हो गए।

2019 में स्वामी असीमानंद को भी अदालत ने बरी कर दिया, बावजूद इसके कि उनका कबूलनामा भी था।

प्रश्न यही उठता है — क्या जांच ढीली थी, या मामला ही राजनीतिक था?

राजनीतिक ब्लेम गेम: कांग्रेस vs बीजेपी — भगवा को लेकर महायुद्ध

बीजेपी आरोप लगाती रही कि कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत भगवा आतंकवाद जैसा शब्द गढ़ा। वहीं कांग्रेस कहती है — आतंक का कोई रंग नहीं होता।

2025 में जैसे ही कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा व अन्य को बरी किया, फडणवीस ने कांग्रेस से माफ़ी की मांग की।

भगवा रंग अब अपराध नहीं, चुनावी पूंजी है?

आज भगवा रंग सिर्फ किसी धर्म का प्रतीक नहीं — बल्कि चुनावी हथियार है। एक ओर आस्था की आड़ में राजनीति, तो दूसरी ओर राजनीति की आड़ में आस्था पर हमला — Welcome to Indian Politics 101!

आखिर धमाके किसने किए?

राजनीति चलती रही, लोग मरते रहे, आरोप लगते रहे — लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी हवा में है:

“मालेगांव में धमाके आख़िर किए किसने थे?”

कोर्ट के फैसले में “सबूतों के अभाव” की बात कही गई, लेकिन पीड़ित पक्ष अब भी जवाब चाहता है।

भगवा शब्द का राजनैतिक भविष्य

‘भगवा आतंकवाद’ शब्द भले कोर्ट में साबित न हुआ हो, लेकिन जनता की अदालत में इसकी सुनवाई जारी है। 2025 में मालेगांव का फैसला आया है, लेकिन भारत में आस्था बनाम आतंक की यह बहस अभी खत्म नहीं हुई।

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