
लोकसभा में आज रवि किशन ने वह बात कह दी जो हर ग्राहक मन ही मन सोचता है — “भैया, ₹120 की दाल है, पर कटोरी कहाँ है?”
जी हाँ, भारत में आज भी ढाबों और होटलों में खाना मंगवाना एक ‘खाद्य जुआ’ है। ग्राहक मेन्यू देखता है, दाल मंगवाता है, लेकिन जब थाली आती है – लगता है जैसे दाल नहीं, ट्रेलर आया हो।
मेन्यू कार्ड में सिर्फ़ दाम, पर दाम में दम कितना?
रवि किशन ने संसद में साफ़ कहा — “मेन्यू में ₹250 की सब्ज़ी लिखी होती है, लेकिन यह नहीं कि कितने लोगों के लिए है।”
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₹150 की मटर पनीर = दो चम्मच?
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₹90 की रोटी = हवाई जहाज़ की सवारी?
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सरसों का तेल है या रिफाइंड? — कुकिंग मीडियम भी रहस्य
“दाल की कीमत तय है, पर कटोरी अज्ञात है!” – रवि किशन
जनता को मूल्य तो मालूम है, पर मात्रा नहीं। एक परिवार जब 4 प्लेट चना मंगवाता है तो निकलता है – 2 चम्मच प्रति व्यक्ति + भावना से भरपूर प्रेम।
भोजन या टेस्टर ट्रायल – ये तय कौन करेगा?
रवि किशन ने सरकार से अपील की है कि:
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हर व्यंजन की ‘नेट क्वांटिटी’ बताना अनिवार्य हो
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कुकिंग ऑयल और सामग्री की जानकारी दी जाए
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कीमत के साथ ‘मात्रा’ और ‘क्वालिटी’ भी हो पारदर्शी
ढाबा हो या फाइव स्टार – सबका हो एक नियम!
भारत जैसे देश में, जहाँ हर चौक पर होटल और हर मोड़ पर ढाबा है – वहाँ ये ‘कितना खाना मिलेगा’ का मुद्दा अब तक भगवान भरोसे है।
लेकिन अब शायद रवि किशन की पहल से यह स्पष्ट होगा कि पनीर की सब्ज़ी में कितने पनीर हैं और रोटी की साइज नैनो है या SUV?
खाद्य क्षेत्र में आए पारदर्शिता का कानून?
सांसद का कहना है – जैसे पैकेज्ड फूड पर नेट वज़न होता है, वैसे ही अब समय आ गया है कि होटल के खाने में भी कटोरी की गिनती हो।
“खाओ, पर जान के खाओ!”
भारत सरकार यदि रवि किशन की मांग मानती है तो एक दिन ऐसा आएगा जब:
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ग्राहक बोलेगा – “एक दाल मंगाओ, 250ml वाली।”
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वेटर पूछेगा – “घी वाला या रिफाइंड?”
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और रसीद पर लिखा होगा – ₹120 = दाल 250ml, सरसों तेल में, सर्विंग: 1.5 व्यक्ति
और उस दिन जनता कहेगी — “अब खाना भी विज्ञान बन गया है!”
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