राहुल गाँधी : वो राजकुमार जो हर बार ‘Demo Mode’ में रह जाता है

आशीआशीष शर्मा ऋषि ष शर्मा ऋषि 

राहुल गांधी भारतीय राजनीति की वो पहेली हैं, जिसे हल करने में न कांग्रेस को मज़ा आ रहा है, न विपक्ष को चैन। वो नेता हैं जो हर चुनाव से पहले खुद को “रीलॉन्च” करते हैं, जैसे कोई पुराना ब्रांड बार-बार नया पैकेज पहनकर आ जाए — पर अंदर वही पुराना माल!

जहाँ बाकी नेता जनता से जुड़ने के लिए चाय पर चर्चा करते हैं, वहीं राहुल गांधी टी-शर्ट में ट्रेकिंग करते हुए कहते हैं, “मैं जनता के साथ हूँ।” जी हाँ, वही जनता जो रोज़ मेट्रो में धक्का खा रही है, और राहुल जी ट्रेकिंग रूट पर DSLR वाले फोटोग्राफर के साथ जुड़ रहे हैं।

वंशवाद का WiFi

राहुल गांधी की राजनीति कुछ वैसी है जैसे किसी को WiFi फ्री में मिल जाए — स्पीड कैसी है, ये कोई नहीं पूछता।
उनका सबसे बड़ा योगदान यह है कि वो हैं। और यही कांग्रेस की सबसे बड़ी उम्मीद भी — “देखो, हमारा नेता अब भी है।”

अगर किसी और पार्टी का नेता 20 साल में भी परिपक्व नहीं हुआ होता, तो अब तक तो उसे पार्टी छोड़कर MLM बिज़नेस में डाल दिया जाता।

पर राहुल जी… वो तो गांधी-नेहरू ब्रांड के “ऑटोमैटिक एक्सटेंशन प्लान” के तहत हर साल फिर से लॉन्च हो जाते हैं।

एक साउंड क्लिप की खोज

राहुल गांधी का भाषण देना ऐसा होता है जैसे कोई स्टैंडअप कॉमेडियन सेट भूल जाए और फिर भी माइक नहीं छोड़े।
कभी बोलते हैं:
“मोदी जी ने देश को दो हिस्सों में बाँट दिया है…”
और अगले 10 मिनट में खुद ही विषय बदल देते हैं — बेरोज़गारी से लेकर प्यार, नफ़रत, चावल, Google Maps, सबकुछ आ जाता है।

उनकी रैलीज़ में सबसे ज़्यादा ध्यान इस बात पर होता है कि मीडिया कौन-सा 8 सेकंड क्लिप चुनेगा, जिसमें वो ज़रा मज़ेदार या उलझे हुए दिखें।

और सच कहें तो… वो क्लिप मीडिया को मिल भी जाती है — हर बार।

भारत जोड़ो यात्रा: कैमरा ऑन, जनता ऑफ

भारत जोड़ो यात्रा राहुल जी की अब तक की सबसे बड़ी कोशिश थी जनता से जुड़ने की। पर जुड़ाव से ज़्यादा, जनता को ‘इंस्टा फीड’ मिल गया।

हर स्टॉप पर राहुल गांधी की तस्वीरें आतीं — गरीब के घर में बैठकर खाना खाते हुए, किसी बच्चे को गले लगाते हुए, बूढ़े किसान से हाथ मिलाते हुए… पर सवाल ये है:
क्या ये “फोटोशूट पॉलिटिक्स” थी या जनता से सच्चा संवाद?

शायद दोनों का थोड़ा-थोड़ा — पर भरोसा जनता ने उतना नहीं किया, जितना DSLR कैमरे ने।

विपक्ष का राजा लेकिन राजा नहीं

एक मज़ेदार बात ये है कि राहुल गांधी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता हैं — लेकिन खुद को नेता मानने से हिचकते हैं।
कभी कहते हैं:
“मैं नेता नहीं हूँ, सिर्फ़ एक कार्यकर्ता हूँ।”
वाह!
ये वैसा है जैसे कोई CEO बोले: “मैं सिर्फ़ टेबल साफ करता हूँ, कंपनी खुद चल रही है।”

राहुल जी को नेता बनना पसंद नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी से शिकायत बहुत है।
“मैं क्यों नहीं बना?” — जवाब बहुत आसान है: “क्योंकि आपने बनना चाहा ही कब है?”

इंटरव्यू और चाय का प्याला

राहुल गांधी के इंटरव्यू ऐसे होते हैं जैसे कोई स्क्रिप्टेड वेब सीरीज़ हो — सवाल तय, जवाब आधे पढ़े हुए, और हँसी ज़रूरत से ज़्यादा।
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा:
“मुझे राजनीति में मज़ा आने लगा है।”
देश ने सोचा — “तब तक क्या कर रहे थे? Sudoku?”

उनकी मीडिया मौजूदगी इतनी “अंतरंग” होती है कि कभी-कभी लगता है देश को नहीं, कैमरे को इंप्रेस किया जा रहा है।
उनके जवाबों में रिलेशनशिप सलाह, लाइट फिलॉसफी और थोड़ा सा विरोधाभास मिला कर एक अजीब-सा कॉकटेल बनता है — जो सिर चढ़ जाए, पर असर करे इसकी कोई गारंटी नहीं।

राहुल का ‘रीब्रांडिंग मंत्र’

राहुल गांधी हर चुनाव से पहले रीब्रांड होते हैं:

  • 2009: युवा नेता

  • 2014: गंभीर नेता

  • 2019: प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार

  • 2022: विचारक

  • 2024: “Old monk” लुक में लोकतंत्र का रक्षक

हर बार नई टी-शर्ट, नया मिशन, नया स्लोगन — लेकिन जनता को फर्क तभी पड़ता है जब बात जमीन से उठती है। और यही वो ज़मीन है जहाँ राहुल गांधी बार-बार फिसल जाते हैं।

पार्टी की स्थिति: हाईकमान की हाई-तनाव

कांग्रेस पार्टी अब एक पारिवारिक WhatsApp ग्रुप जैसी बन चुकी है — सब जुड़े हुए हैं, पर कोई कुछ भेजता नहीं।

राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने कई चुनाव हारे, पर हाईकमान ने कभी ये नहीं पूछा: “भैया, प्लान क्या है?”

शायद डर है, कि अगर राहुल जी ने जवाब दिया तो… वो 20 मिनट का TED Talk होगा जिसमें अंत में कोई ठोस बात नहीं होगी।

राहुल गांधी भारतीय राजनीति के उस डायलॉग की तरह हैं जो हर फिल्म में आता है:
“मैं वापस आऊँगा!”
लेकिन कैसे, क्यों और कब — इसका जवाब कोई नहीं जानता।

वो ज़रूरी हैं — क्योंकि भारत को एक मज़बूत विपक्ष चाहिए।
पर वो अधूरे हैं — क्योंकि उनकी राजनीतिक यात्रा अब भी आत्म-खोज में है, जन-समर्थन में नहीं।

राहुल गांधी वो नेता हैं जो हर चुनाव के बाद फिर से “प्रैक्टिस मोड” में चले जाते हैं।
जनता चाहती है खिलाड़ी — और राहुल गांधी अब भी Tutorial Level पर हैं।

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