काशी की आत्मा खामोश हुई: पंडित छन्नूलाल मिश्रा नहीं रहे

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

भारतीय शास्त्रीय संगीत के आकाश से आज एक अनमोल तारा टूट गया। पद्म विभूषण से सम्मानित महान गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा का आज (गुरुवार) सुबह 4:15 बजे वाराणसी में 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और बीएचयू मेडिकल इंस्टिट्यूट में उनका इलाज चल रहा था।

आजमगढ़ से बनारस तक: सुरों की साधना का सफर

पंडित जी का जन्म 3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के हरिहरपुर गांव में हुआ था। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने पिता बदरी प्रसाद मिश्र से ली, लेकिन उनका गहन प्रशिक्षण किराना घराने के उस्ताद अब्दुल घनी खान से हुआ।

वे प्रसिद्ध तबला वादक पंडित अनोखेलाल मिश्र के दामाद थे, जिससे बनारस की संगीत परंपरा से उनका नाता और भी गहरा हो गया।

खयाल और ठुमरी को दिल से गाया, आत्मा से जिया

पंडित छन्नूलाल मिश्रा की गायकी में पूर्वी ठुमरी, खयाल और दादरा, कजरी, छैती जैसी लोकधुनों की मधुरता का अनूठा संगम था। उनकी आवाज में एक भावपूर्ण विरासत थी, जिसने काशी की परंपरागत गायकी को नया जीवन दिया।

 ‘आरक्षण’ से ‘पद्म विभूषण’ तक: एक सम्मानजनक यात्रा

2010 – पद्म भूषण

2020 – पद्म विभूषण

सुर सिंगार संसद, बॉम्बे का ‘शिरोमणि पुरस्कार’

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड

नौशाद अवॉर्ड

संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप

पंडित जी ने प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ (2011) में ‘सांस अलबेली’ और ‘कौन सी डोर’ जैसे गानों के ज़रिए शास्त्रीय संगीत को आम जनमानस तक पहुँचाया।

निजी जीवन में दुःख, लेकिन सुरों से नाता नहीं टूटा

कोविड महामारी के दौरान 2021 में पत्नी माणिक रानी मिश्र और बेटी संगीता मिश्र का निधन हो गया था। इसके बाद भी उन्होंने संगीत से दूरी नहीं बनाई। मिर्जापुर प्रशासन ने उनकी देखरेख के लिए विशेष चिकित्सकीय व्यवस्था भी की थी।

मोदी कनेक्शन: 2014 में बने थे प्रस्तावक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनका एक खास जुड़ाव भी था। 2014 के लोकसभा चुनाव में, मोदी ने वाराणसी से नामांकन भरते समय पंडित छन्नूलाल मिश्रा को अपना प्रस्तावक बनाया था। यह उनकी लोकप्रियता और सामाजिक सम्मान का प्रतीक था।

अंतिम विदाई: मणिकर्णिका घाट पर होगा अंतिम संस्कार

पंडित जी का अंतिम संस्कार आज वाराणसी के पवित्र मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। उनके जाने से संगीत जगत, खासकर काशी की ठुमरी परंपरा को जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई असंभव है।

सुरों की आत्मा अमर है

पंडित छन्नूलाल मिश्रा का निधन सिर्फ एक कलाकार की मृत्यु नहीं, बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक पूरी परंपरा का अवसान है।
हालांकि उनका शारीरिक स्वरूप अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी गायकी, बंदिशें और भावपूर्ण ठुमरियाँ सदैव हमारी सांस्कृतिक स्मृति में जीवित रहेंगी।

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