पाकिस्तान : पहली बार बैसाखी पर भारतीय श्रद्धालुओं को दिए रिकॉर्ड वीजा

नई दिल्ली। पाकिस्तान सरकार ने इस साल बैसाखी पर्व पर एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 50 वर्षों में पहली बार 6,751 भारतीय सिख श्रद्धालुओं को वीजा जारी किया है। यह संख्या भारत-पाकिस्तान के बीच 1974 के धार्मिक प्रोटोकॉल समझौते में तय 3,000 तीर्थयात्रियों की सीमा से कहीं अधिक है। इस निर्णय को लेकर पाकिस्तान सरकार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना की जा रही है।

विशेष अनुरोध पर जारी हुए अतिरिक्त वीजा

पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्रालय और इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) के विशेष अनुरोध पर 3,751 अतिरिक्त वीजा प्रदान किए गए हैं।
ईटीपीबी के अतिरिक्त सचिव सैफुल्लाह खोखर ने बताया कि यह कदम दोनों देशों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

10 अप्रैल को पहुंचे श्रद्धालु, 14 अप्रैल को होगा मुख्य समारोह

भारत से सिख श्रद्धालु 10 अप्रैल को सिख नववर्ष और खालसा पंथ की स्थापना दिवस के अवसर पर वाघा सीमा के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे।
14 अप्रैल को बैसाखी का मुख्य आयोजन ननकाना साहिब स्थित गुरुद्वारा जन्मस्थान में होगा, जो गुरु नानक देव जी की जन्मस्थली है।

पहली बार पंजा साहिब की जगह ननकाना साहिब में मुख्य आयोजन

इससे पहले बैसाखी का मुख्य आयोजन आमतौर पर गुरुद्वारा पंजा साहिब (हसन अब्दाल) में होता था, लेकिन इस बार तीर्थयात्रियों की अधिक संख्या को देखते हुए मुख्य समारोह को गुरुद्वारा जन्मस्थान, ननकाना साहिब में स्थानांतरित किया गया है।

श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधाएं और सुरक्षा प्रबंध

पाकिस्तान सरकार ने तीर्थयात्रियों के लिए विशेष इंतज़ाम किए हैं जिनमें शामिल हैं:

  • वातानुकूलित बसें

  • आरामदायक आवासीय सुविधाएं

  • पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था

साथ ही, सभी प्रमुख गुरुद्वारों को विशेष रूप से सजाया गया है, जिससे श्रद्धालुओं को एक दिव्य और भव्य वातावरण का अनुभव हो।

19 अप्रैल को भारत लौटेंगे श्रद्धालु

सिख तीर्थयात्रियों का यह जत्था 19 अप्रैल को अपनी यात्रा पूरी कर भारत वापस लौटेगा।
सैफुल्लाह खोखर ने कहा,

“पाकिस्तान सिखों के लिए दूसरे घर जैसा है। हम सभी श्रद्धालुओं का गर्मजोशी से स्वागत करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।”

धार्मिक सद्भाव की ओर एक मजबूत कदम

पाकिस्तान द्वारा इतनी बड़ी संख्या में वीजा जारी करना धार्मिक सहिष्णुता और अंतरराष्ट्रीय सद्भावना की मिसाल माना जा रहा है। इस कदम ने भारत-पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊर्जा दी है।

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