
बिहार की राजनीति में इस वक्त चुनावी पारा 44 डिग्री पर उबाल मार रहा है और उसमें नीतीश कुमार ने पेंशन की गोल्डन गोली दाग दी है। जो पहले बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांगजन महीने के 400 रुपये में अपना सियासी अस्तित्व महसूस कर रहे थे, अब उन्हें सीधा 1100 रुपये का “वोट-फ्रेंडली बोनस” मिलेगा।
नीतीश ने जब ये ऐलान सोशल मीडिया पर किया, तो जनता से ज़्यादा विपक्ष के व्हाट्सएप ग्रुप में टेंशन फैल गया।
ना सिर्फ अपने, भारत अब पड़ोसियों का भी संकटमोचक
1100 की बात है जनाब, ये कोई छोटी मोटी स्कीम नहीं
सोचिए, एक झटके में 175% बढ़ोतरी। इतना रिटर्न तो म्यूचुअल फंड भी नहीं देते! नीतीश कुमार अब खुद को ‘बूढ़ों का मसीहा’ कह रहे हैं, और बीजेपी वाले सोच में पड़ गए कि बुजुर्ग अब किसके साथ बैठेंगे—कमल या छड़ी?
इस फैसले के बाद हर पांचवां बिहारी सोच रहा है—”क्या अब वोट देने की उम्र 60 से शुरू होनी चाहिए?”
चुनावी चाल या वाकई बुजुर्ग भाव?
विपक्ष चिल्ला रहा है—”नीतीश जी को तीन साल से याद नहीं आई ये पेंशन, अब चुनाव आते ही बुजुर्गों की याद क्यों?”
वहीं जेडीयू कहती है, “नीतीश हमेशा गरीबों के साथ खड़े रहे हैं, बस अब वोट के वक़्त बैठकर साथ दे रहे हैं।”
सियासत की भाषा में इसे ‘पॉलिटिकल टेम्परेचर चेक’ कहते हैं।
10 तारीख का कमिटमेंट: अब बुजुर्ग भी टाइमिंग पर रहेंगे
सरकार ने ऐलान किया कि पैसा हर महीने की 10 तारीख को सीधे खाते में पहुंचेगा। मतलब अब बुजुर्गों के पास सिर्फ ‘दंत मंजन’ और ‘चाय’ का इंतज़ार नहीं होगा, बल्कि पेंशन का एसएमएस अलर्ट भी आएगा। विपक्ष की हालत ऐसी है जैसे किसी पुराने फोन में नेटपैक खत्म हो गया हो—देख भी नहीं पा रहे और जवाब भी नहीं दे पा रहे।
वोटर डेटा साइंस: बुजुर्ग = हर जाति में घुसपैठ
नीतीश का ये पेंशन प्लान सिर्फ दिल जीतने वाला नहीं, वोट गिनने वाला है। 1 करोड़ से ज़्यादा लाभार्थी, हर गांव-गली में मौजूद हैं। यानी ये पॉलिसी सोशल नहीं, सियासी इंजीनियरिंग है।
कांग्रेस और आरजेडी अब ये सोच रहे हैं कि वे भी कोई ‘युवा स्कीम’ लेकर आएं, मगर ध्यान रहे—युवा अभी टिकटॉक पर व्यस्त हैं, बूढ़े वोट देने में।
बूढ़ों की लाठी, सरकार की गारंटी?
राजनीति में कहा जाता है—“बूढ़ा चाहे छड़ी से चले, लेकिन वोट देने में सबसे तेज़ होता है।”
नीतीश शायद यही बात समझ चुके हैं। अब देखना यह है कि विपक्ष इससे निपटने के लिए क्या लाता है—नया मुद्दा या पुराना भाषण?
राजनीति अब सिर्फ घोषणा नहीं, ट्रांजैक्शन बन गई है
इस बार बिहार में चुनाव सिर्फ नारों का नहीं होगा, बैंक बैलेंस और पेंशन अलर्ट का होगा। वोटर पूछेगा—“हमें कित्ता मिला?”
और नेता बोलेगा—“10 तारीख को देख लेना भाई!”
तो अगली बार जब कोई नेता मंच पर बोलेगा कि “हम आपके साथ हैं” — तो जनता कहेगी, “सिर्फ बोलो मत, खाते में भेजो!”
21 जून 2025 | लखनऊ से लेकर अमेरिका तक की बड़ी खबरें