
भारत सरकार के नीति निर्धारक थिंक टैंक नीति आयोग ने एक विवादास्पद वर्किंग पेपर को अपनी वेबसाइट से हटा दिया है। यह पेपर भारत-अमेरिका कृषि व्यापार पर केंद्रित था, जिसमें अमेरिकी GM सोयाबीन और मक्का के आयात और कुछ कृषि उत्पादों पर टैरिफ में छूट देने की सिफारिश की गई थी।
30 मई को जारी इस पेपर का किसान यूनियनों ने जोरदार विरोध किया था।
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किसानों ने जताया कड़ा एतराज
चौधरी सवित मलिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान यूनियन, ने कहा कि GM फसलों के लिए बाजार खोलना 70 करोड़ भारतीयों की आजीविका पर सीधा हमला है। उन्होंने अमेरिकी सब्सिडी और कम उत्पादन लागत का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय किसान प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।
14 जून को किसान यूनियन द्वारा इस पेपर के खिलाफ औपचारिक बयान जारी किया गया, जिसके बाद यह नीति आयोग की वेबसाइट से हट गया। यह किसानों के लिए एक बड़ी नीतिगत जीत मानी जा रही है।
पेपर में क्या थे सुझाव?
इस विवादित वर्किंग पेपर में सुझाव दिया गया था कि:
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भारत को GM सोयाबीन और मक्का के लिए बाजार खोलना चाहिए।
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अमेरिका को कुछ कृषि उत्पादों पर टैरिफ में रियायत दी जा सकती है।
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भारत को मछली, मसाले, चाय, रबर जैसे उत्पादों का अमेरिकी बाजार में निर्यात बढ़ाना चाहिए।
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वर्तमान में भारत अमेरिका को लगभग $5.75 बिलियन का कृषि निर्यात करता है, जिसे और बढ़ाने की आवश्यकता है।
कांग्रेस का सवाल – किसके इशारे पर जारी हुआ पेपर?
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पूरे घटनाक्रम पर सवाल उठाते हुए कहा कि पेपर में अमेरिकी हितों को वरीयता दी गई है। उन्होंने पूछा कि यह पेपर किसके निर्देश पर प्रकाशित हुआ और क्या यह भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की तैयारी का संकेत है?
व्यापार समझौते के बीच फंसा कृषि मसला
भारत और अमेरिका जल्द ही अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे सकते हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत में कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए उसे बड़ा बाजार मिले।
लेकिन भारत के लिए यह मुद्दा छोटे किसानों की आजीविका से जुड़ा है, जो इसे एक संवेदनशील विषय बनाता है।
नीति आयोग का यह कदम किसानों के विरोध और जन भावना के दबाव में लिया गया निर्णय प्रतीत होता है। यह मामला दर्शाता है कि कृषि नीतियों में पारदर्शिता और संवाद की कितनी आवश्यकता है, खासकर जब बात विदेशी दबाव और घरेलू कृषि सुरक्षा की हो।