“निठारी केस का The End: CBI हारी, कोली खुद जीता!”

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

“कानून के हाथ लंबे होते हैं, लेकिन दलीलों से लचकदार भी हो जाते हैं।” 2006 से जेल में बंद सुरेंद्र कोली अब आज़ाद है।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को फैसला सुनाते हुए उसे निठारी कांड के सभी मामलों में बरी कर दिया। और वो भी… खुद की पैरवी करके!
जब वकील न हों, तब खुद की आवाज़ ही सबसे बड़ी दलील बन जाती है।

CBI की कहानी खत्म, कोली की आज़ादी शुरू

जिन सबूतों को लेकर CBI कोर्ट-कचहरी घूमती रही, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने “गैर-पर्याप्त” मानते हुए CBI की सभी अपीलें खारिज कर दीं।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी CBI की दलीलों को नकार कर दोनों आरोपियों को बरी किया था।
अब लगता है, निठारी कांड का न्यायिक चैप्टर ऑफिशियली क्लोज़ हो गया है।

जज बोले — दलीलों में दम नहीं, जेल में बंद क्यों?

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने CBI से सीधा सवाल पूछा:
“जिन सवालों पर कोली ने शक जताया, उनके जवाब आपके पास हैं?”
CBI के पास जवाब नहीं था — और कानून में चुप्पी भी जवाब होती है।

2006 से जेल, अब 2025 में बरी — 19 साल में मिला इंसाफ़?

सुरेंद्र कोली पर कम से कम 12 मामलों में मौत की सजा सुनाई गई थी। मोनिंदर सिंह पंढेर को भी 2 मामलों में दोषी ठहराया गया था।
लेकिन 2023 में पंढेर को रिहा कर दिया गया, जबकि कोली कोर्ट में खुद केस लड़ता रहा। और अंत में, जीत उसी की हुई — जिसे सबने हार मान लिया था।

CBI का ‘Confession का Confusion’ — कोर्ट ने नहीं माना ‘कबूलनामा’

CBI ने दावा किया था कि कोली ने खुद गुनाह कबूल किया है।
लेकिन कोर्ट ने साफ कहा — “कबूलनामे के पीछे जांच की मजबूती नहीं, मजबूरी थी।”

यानि, या तो confession था… या confusion।

निठारी केस: अब बस फाइलों में ही जिंदा रहेगा?

अब जब दोनों आरोपी बरी हो गए हैं, तो सवाल यही उठता है — क्या 2006 में जो हड़कंप मचा था, वो आज एक ‘मिसहैंडल्ड केस’ बनकर रह गया?

लोग कह रहे हैं:

“इतने साल तक CBI अगर ‘कहानी’ ही साबित न कर सके, तो शायद Netflix को दे देते ये केस।”

निठारी के बाद की नीतियाँ — सिस्टम को अब सबक मिलना चाहिए

  • जनता को जवाब चाहिए — क्या हुआ उन मासूमों के साथ जिनके शव बरामद हुए थे?

  • अगर कोली और पंढेर निर्दोष हैं, तो दोषी कौन है?

  • और अगर CBI जैसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसियां इतने चर्चित मामलों में ही चूक जाएं — तो सिस्टम पर भरोसा कैसे टिकेगा?

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