
रामपुर की शाही विरासत से जुड़ी नवाबजादी मेहरून्निसा बेगम का अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
उनका जन्म 24 जनवरी 1933 को रामपुर रियासत के अंतिम नवाब रज़ा अली खान और तलअत जमानी बेगम के घर हुआ था।
बेगम साहिबा का अंतिम संस्कार वॉशिंगटन डीसी में किया गया, जहाँ परिवार के सदस्यों ने उनकी कब्र पर फातिहा पढ़ी।
रामपुर और भारतभर में इस खबर से शोक की लहर है। शहर के लोग उन्हें “तहज़ीब, सादगी और इल्म की मूरत” के रूप में याद कर रहे हैं।
सादगी और तहज़ीब की मिसाल
रामपुर के शाही परिवार के सदस्य नवाब काज़िम अली खान (नवेद मियां) ने कहा — “उनका जाना हमारे परिवार के लिए अपूरणीय क्षति है। वे तहज़ीब और गरिमा की मिसाल थीं।”
पूर्व सांसद बेगम नूरबानो ने भी श्रद्धांजलि दी —“उनका निधन न सिर्फ़ परिवार के लिए बल्कि रामपुर की संस्कृति के लिए एक युग का अंत है।”
शिक्षा और संस्कृति का संगम
मेहरून्निसा बेगम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मसूरी और लखनऊ में प्राप्त की। उन्हें उर्दू, हिंदी और भारतीय संगीत-संस्कृति में गहरी रुचि थी।
उनका व्यक्तित्व भारत की तहज़ीब, पाकिस्तान की कूटनीति और अमेरिका की शिक्षा-जगत — तीनों का अनोखा मेल था।
भारत-पाकिस्तान-अमेरिका: तीन देशों से जुड़ा जीवन
उनका पहला विवाह भारतीय सिविल सेवा अधिकारी सैयद तकी नकी से हुआ था। बाद में उन्होंने पाकिस्तान के एयर चीफ़ मार्शल अब्दुर्रहीम खान से विवाह किया, जो स्पेन में पाकिस्तान के राजदूत भी रहे। इससे उनका जीवन भारत और पाकिस्तान दोनों संस्कृतियों से गहराई से जुड़ गया।

बेगम मेहरून्निसा बेगम का जीवन “सीमाओं से परे तहज़ीब का पुल” कहा जा सकता है।
अमेरिका में भारतीय संस्कृति की दूत
1977 में वे वॉशिंगटन डीसी चली गईं और वहाँ इंटरनेशनल सेंटर फॉर लैंग्वेज स्टडीज़ में हिंदी-उर्दू सिखाने लगीं। उन्होंने विदेशी छात्रों को भारतीय भाषाओं और संस्कृति से परिचित कराया और “कल्चर एम्बेसडर ऑफ इंडिया” के रूप में पहचान बनाई। उनका जीवन दर्शाता है कि सच्ची तहज़ीब कहीं भी जाए, अपनी खुशबू छोड़ जाती है।
परिवार और विरासत
उनके परिवार में बेटा जैन नकी, बेटियां जेबा हुसैन और मरयम खान हैं। एक पुत्र आबिद खान का पहले ही निधन हो चुका है। रामपुर के बुज़ुर्ग आज भी उन्हें “शाही परंपरा की सजीव मिसाल” के रूप में याद करते हैं।
रामपुर रियासत का गौरवशाली इतिहास
रामपुर रियासत की स्थापना नवाब अली मोहम्मद खान ने 18वीं सदी में की थी। स्वतंत्रता से पहले रामपुर के पास अपनी सेना, रेलवे, बिजलीघर और कोर्ट तक थे। 1949 में रामपुर भारत में मिला दिया गया। नवाबजादी मेहरून्निसा बेगम इसी गौरवशाली वंश की प्रतीक थीं — जिन्होंने अपनी संस्कृति को सीमाओं से परे जिया।
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