
देश के हर राज्य में जातीय संतुलन और “पॉलिटिकल रिमोट कंट्रोल” की तकनीक के चलते डबल डिप्टी सीएम मॉडल अपनाया जा चुका है। यूपी से लेकर महाराष्ट्र — जहाँ देखो वहां दो-दो उप मुख्यमंत्री बैठाए जा रहे हैं। लेकिन जब बात आती है प्रधानमंत्री की कुर्सी की, तो सवाल ये उठता है…
“मोदी जी के सिर पर कोई नहीं? उप प्रधानमंत्री भी नहीं? ये कैसा वन मैन शो है?”
चार दिशाएं, चार डिप्टी पीएम — है ना स्वाभाविक आइडिया?
अब सोचिए, अगर एक राज्य संभालने के लिए दो उप मुख्यमंत्री चाहिए, तो 138 करोड़ लोगों वाला भारत सिर्फ एक ही प्रधानमंत्री से कैसे चल सकता है?
हमारा प्रस्ताव है:
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उत्तर के लिए: कोई अनुभवी नेता, जो हिमालयी मुद्दों पर सख्त हो
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दक्षिण के लिए: जिसे द्रविड़ राजनीति की गहरी समझ हो
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पूर्व के लिए: जो सीमांत राज्यों और चाय बागानों की फिक्र करे
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पश्चिम के लिए: जो कच्छ से कनेक्टेड हो और नमक का सही मूल्य जानता हो
मतलब, “चार डिप्टी पीएम – एक इंडिया, चार डायरेक्शन!”

क्या डिप्टी पीएम बनाने से सत्ता बंट जाएगी?
सवाल तो अच्छा है। लेकिन जब हर राज्य में डिप्टी सीएम बनाने से सत्ता नहीं बंटी, तो यहां क्यों डर?
या फिर… क्या केंद्र की सत्ता में इतनी “सेंटीमीटर टाइट ग्रिप” है कि वहां किसी और को कुर्सी की झलक तक नहीं दिखनी चाहिए?
“जातीय गणित राज्य में काम करता है, तो केंद्र में कैलकुलेटर बंद क्यों है?”
क्या यह भी कोई नया “मन की बात” का मुद्दा बन सकता है? या फिर हम इसे 2029 के घोषणापत्र में डालें?
डिप्टी पीएम के बिना भी काम चल जाएगा क्या?
निश्चित रूप से चल सकता है, लेकिन फिर राज्यों में डबल डिप्टी का तामझाम क्यों?
अगर सब कुछ सेंट्रलाइज्ड है, तो फिर बाकी पद शोपीस हैं क्या?
पीएम साहब, एक बार विचार कीजिए!
देश में जहाँ हर सड़क, हर ब्रिज और हर स्कीम का श्रेय केंद्र सरकार लेती है, वहां थोड़ी जिम्मेदारी बांटना भी लोकतंत्र को मजबूत कर सकता है।
कम से कम चार उप प्रधानमंत्री बनाइए, ताकि देश को भी लगे कि “सबका साथ, सबका विभाग” वाकई में लागू हो रहा है।
डिस्क्लेमर:
यह लेख पूरी तरह से व्यंग्य पर आधारित है। उद्देश्य केवल राजनीतिक ढांचे पर हास्यपूर्ण टिप्पणी करना है, किसी व्यक्ति या पद की अवमानना नहीं।