
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने एक बार फिर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बार उन्होंने सिर्फ ईवीएम को कठघरे में नहीं खड़ा किया, बल्कि उसे बीएसपी की हार का मुख्य ‘फॉल्ट लाइन’ भी बताया।
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जातिवादी पार्टियों पर ‘टैम्परिंग’ का आरोप
मायावती का आरोप है कि कुछ जातिवादी पार्टियां राजनीतिक लाभ के लिए ईवीएम में ऐसी धांधली करा रही हैं कि अब बीएसपी के उम्मीदवार भी जीत नहीं पा रहे। उनका कहना है कि ये चालें इसीलिए हैं ताकि दलितों और पिछड़े वर्गों का बीएसपी से मोहभंग हो जाए।
कह सकते हैं, ईवीएम नहीं हारी, बीएसपी से साज़िश हार गई!
विपक्ष की ‘वापसी बैलेट’ डिमांड में बीएसपी भी शामिल
मायावती ने दावा किया कि अब तो विपक्ष की कई पार्टियां भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही हैं। उनका सुझाव है कि देश में चुनाव फिर से बैलेट पेपर से कराए जाने चाहिए, जैसा पुराने ‘सादगी भरे लोकतंत्र’ के जमाने में होता था – जब मतपत्र पर ठप्पा था और गिनती में तीन दिन की छुट्टी मिलती थी।
‘सरकार बदलेगी तो मशीन हटेगी!’ – मायावती का राजनीतिक मैनीफेस्टो
बीएसपी सुप्रीमो का कहना है कि फिलहाल ये बदलाव मौजूदा भाजपा सरकार के रहते मुमकिन नहीं है। लेकिन जैसे ही सत्ता परिवर्तन होगा, बैलेट पेपर भी वापसी करेगा और बीएसपी के दिन भी बहार की तरह खिल उठेंगे।
Translation: वोट के साथ नोट नहीं गिने जाएंगे, और बीएसपी फिर ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि ‘क्वीन’ बनेगी।
क्या वाकई EVM ही है BSP की हार का कारण?
EVM पर सवाल उठाना एक रणनीतिक शरण है, जब मैदान में जमीनी पकड़ ढीली हो जाए। लेकिन अगर विपक्ष एकजुट होकर बैलेट पेपर की मांग उठाए, तो चुनाव आयोग को भी चाय छोड़कर एक बार मीटिंग करनी ही पड़ सकती है।
बैलेट पेपर से जीत की गारंटी तो नहीं, पर बहस ज़रूर पक्की!
चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन हर चुनाव के बाद ईवीएम को गाली देना अब एक Post-Poll Riwaaz बनता जा रहा है। मायावती का बयान भले ही वोट बैंक को फिर से जोड़ने का प्रयास हो, लेकिन बैलेट पेपर की वापसी फिलहाल सिर्फ भाषणों तक ही सीमित दिखती है।
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