
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर परेशान करने वाला मामला सामने आया है।
इस बार निशाना बनीं एक वरिष्ठ महिला असिस्टेंट प्रोफेसर, जो डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में कार्यरत हैं।
सिरफिरा आशिक उनकी जिंदगी को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।
एक दिन में 1000 कॉल, 5000 अश्लील मैसेज – हदें पार
पीड़िता के अनुसार आरोपी महेश तिवारी (41 वर्ष, निवासी बस्ती) ने उसे एक ही दिन (12 मई) में 1000 से ज्यादा बार कॉल किया और 5000 से अधिक अश्लील मैसेज व फोटो भेजे।
मतलब अगर इसने कॉल नहीं किया होता, तो शायद खुद अपना टेलीकॉम ऐप लॉन्च कर देता!
पीड़िता ने पहले 1090 वीमेन हेल्पलाइन पर शिकायत भी की थी, लेकिन शुरुआती चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ।
पीछा करते-करते लिफ्ट तक पहुंचा आरोपी
19 अगस्त को आरोपी सारी हदें पार करता हुआ ओपीडी से प्रोफेसर के फ्लैट तक पहुंच गया। जैसे ही प्रोफेसर लिफ्ट का इंतजार कर रही थीं, उन्होंने देखा कि आरोपी वहीं खड़ा है। साहस दिखाते हुए महिला प्रोफेसर ने जोर से चीखा, सिक्योरिटी गार्ड्स ने तुरंत आकर आरोपी को पकड़ लिया।
पुलिस ने दबोचा, मोबाइल की जांच जारी
विभूतिखंड पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। थाने के इंस्पेक्टर सुनील सिंह ने बताया कि आरोपी के मोबाइल की डिजिटल जांच की जा रही है ताकि पता चल सके कि कहीं और भी महिलाओं को तो इसने परेशान नहीं किया।
“डिजिटल स्टॉकर अब ऑन-ग्राउंड शिकारी भी बन चुका था।”
1090 का क्या फायदा, जब फॉलोअप ही ना हो?
सवाल ये उठता है कि जब पीड़िता ने मई में ही शिकायत दर्ज कर दी थी, तो आरोपी को खुली छूट कैसे मिली?
क्या 1090 जैसे महिला हेल्पलाइन सिस्टम “सिर्फ कॉल रिसीव और चेतावनी” तक सीमित रह गए हैं?
इस मामले ने साफ कर दिया कि “सिरफिरे को सिर्फ सख्त चेतावनी देना उसी तरह है, जैसे बाघ से कहना – शाकाहारी बन जा।”
महिला सुरक्षा के लिए सिस्टम को चाहिए ‘एक्शन मोड’, न कि ‘वेट एंड वॉर्न’
अगर सिस्टम ने समय रहते सख्त कार्रवाई की होती, तो महिला प्रोफेसर को इतनी मानसिक और शारीरिक असुरक्षा नहीं झेलनी पड़ती।
महेश तिवारी जैसे लोग मोबाइल डेटा और मनोविकृति के घातक मिक्सचर हैं – जिन्हें सिर्फ जेल नहीं, साइकोलॉजिकल रीहैब और डिजिटल डिटॉक्स की भी जरूरत है।

