
नेपाल के पूर्व प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली ने हालिया Gen‑Z हिंसक प्रदर्शन को लेकर बड़े खुलासे किए। सार्वजनिक मंच पर मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि शुरुआती सूचनाओं में उन्हें बताया गया था “सिर्फ रबर की गोलियां” चलीं — पर बाद में उन्हें मालूम हुआ कि 14 लोग मारे गए। ओली ने इस घटना के बाद 9 सितंबर को रात 11‑11:30 के बीच पीएम पद से इस्तीफा दे दिया, ताकि स्थिति और न बिगड़े।
बड़े खुलासे — क्या‑क्या बताया गया
ओली ने बताया कि शुरुआत में उन्हें हल्की कार्रवाई—रबर की गोलियों—के बारे में कहा गया था। बाद में जब सच्चाई सामने आई तो पता चला कि 14 लोग मौत का शिकार हुए। उन्होंने मीडिया से यह भी पूछा कि किस तरह किसी के सिर पर गोली लगी? और जवाब की मांग की कि इसे रोका कैसे जा सकता था।
इस्तीफे का कारण — ‘मेरे हाथ में कुछ नहीं बचा’
ओली के मुताबिक घटना के अगले दिन यानी 9 सितंबर को उन्होंने महसूस किया कि स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर है। उन्होंने कहा:
“जब मुझे एहसास हुआ कि अब कुछ भी मेरे हाथ में नहीं है, तो मैंने पद छोड़ दिया। इसके बाद आगजनी, तोड़फोड़ और लूटपाट शुरू हो गई।”
इस्तीफा देने का उनका तर्क — संवेदनशील स्थिति को और भड़कने से रोकना।
कार्की सरकार पर निशाना
ओली ने वर्तमान (प्रचार की) सरकार—कार्की सरकार—पर भी हमला बोला। उनका सवाल था कि क्या सरकार यह सोचती है कि “हम देश सौंपकर विदेश भाग जाएंगे?” उन्होंने साफ कहा कि देश को संवैधानिक और लोकतांत्रिक रूप देना उनका उद्देश्य है और राजनीति को पटरी पर लाना होगा। उनका दावा है कि कानून और व्यवस्था बहाल की जाएगी।

अफवाह और व्यक्तिगत आरोप — ‘मेरा नाम लेकर उकसाया गया’
ओली ने कहा कि उनके नाम का दुरूपयोग करके अफवाहें फैलाई गईं — लोगों को उकसाया गया कि वे हथियार मांगें और हिंसा करें। उन्होंने कहा कि ऐसे झूठे कथन जोश में फैलाए गए और जवाब में उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया गया कि जो हाल हुआ, उसके लिए वे ही दोषी ठहराए जाएंगे।
ओली के सवाल: हम इसे कैसे रोकें?
पूर्व पीएम ने न केवल घटनाओं का ब्योरा दिया बल्कि यह भी पूछा कि ऐसी रक्तपात संबंधी घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्थिति पर गहन विचार किए जाने चाहिए थे और देश में हिंसा से बचने के लिए रोकथाम के उपायों की ज़रूरत है।
राजनीतिक जवाबदेही और भविष्य की राह
केपी शर्मा ओली की बयानबाजी ने दर्शाया कि नेपाल की राजनीति में हालिया हिंसा सिर्फ सड़कों की लड़ाई नहीं बल्कि नेतृत्व, संचार और जवाबदेही की परीक्षा भी है। इस्तीफा, खुलासे और सरकार पर आरोप — सब मिलकर यह सवाल छोड़ते हैं: घटना‑वश या जानबूझकर हुई चालें? और सबसे अहम: ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए किस तरह पारदर्शी जांच और सामाजिक सम्वाद ज़रूरी है।
“वादा छठी अनुसूची का, इनाम NSA का?” – खड़गे का केंद्र पर तंज