लालू के ‘कृष्ण’ का सियासी वनवास शुरू- जानिए तेज प्रताप की पूरी कुंडली

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

पटना की गर्मी इस बार सूरज से ज़्यादा तेज प्रताप यादव के नाटकीय जीवन से तप रही है। जब आपके घर में राजनीति पकती हो और सोशल मीडिया पर पकोड़ी बनती हो, तो कुछ तो तलेगा ही!

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25 मई 2025 को लालू प्रसाद यादव ने बेटे से नेता तक सबका चौंका देने वाला कदम उठाया—तेज प्रताप को पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया गया, और ऊपर से परिवार से भी अलग कर दिया गया! अगर राजनीति कोई धारावाहिक होती, तो इस एपिसोड का नाम होता—‘कृष्ण बनाम कुर्सी’

सोशल मीडिया ने डुबोया ‘बाबा’

तेज प्रताप ने जैसे ही अनुष्का यादव के साथ पुरानी-नई तस्वीरें पोस्ट कीं और 12 साल पुराने प्यार का ऐलान किया, सोशल मीडिया की ‘माया’ शुरू हो गई। तस्वीरें वायरल हुईं, विवाद गहराया और तेज प्रताप ने दावा कर दिया कि “मेरा अकाउंट हैक हो गया था।”

लालू जी को शायद लगा कि ये सोशल मीडिया नहीं, पार्टी का साखा हिला रहा है, और फिर क्या… “राम ने लक्ष्मण को वनवास नहीं दिया, लेकिन लालू ने तेज प्रताप को दे दिया!”

राजनीति में ‘कृष्ण’ की अनोखी लीला

तेज प्रताप का राजनीतिक जीवन किसी बोलिवुड फिल्म से कम नहीं—कभी शिव अवतार, कभी गाय लेकर मंत्रालय, कभी मंच पर धक्का-मुक्की, और कभी खुद को कृष्ण बताने वाली बाबागिरी

उनकी शिक्षा इंटरमीडिएट तक है, पर उनका ‘ज्ञान’ फेसबुक लाइव में बहता है। तेजस्वी की रणनीति जहां ग्राउंडेड है, तेज प्रताप की रणनीति अक्सर आकाशगामी रही है।

शादी, तलाक और अब नया “प्रेम कथा”

पहले ऐश्वर्या राय से शादी, फिर तलाक, अब अनुष्का यादव के साथ रिश्ते की घोषणा—तेज प्रताप की निजी ज़िंदगी का ग्राफ तेज़ है, लेकिन सीधा नहीं।
उनकी लव स्टोरी अब पार्टी स्टोरी बन चुकी है—जो अब RJD की स्क्रिप्ट में फिट नहीं बैठती

सन्यासी, यूट्यूबर या बाग़ी नेता?

अब जब पार्टी से बाहर हैं और परिवार से भी, तो तेज प्रताप के सामने तीन रास्ते हैं:

  1. अपना यूट्यूब चैनल शुरू करें: “तेज Talks – Live from Vrindavan”

  2. नया राजनीतिक दल – “ब्रह्मचारी जनता दल (BJD)”

  3. या फिर… गुफा में जाकर शिव तपस्या शुरू कर दें!

‘ट्रेजिक हीरो मोमेंट’

तेज प्रताप यादव अब तक के सबसे अनूठे और विवादित नेताओं में से एक रहे हैं—जिन्होंने मंच, मंदिर और मीडिया—तीनों पर कब्ज़ा किया, लेकिन मतदाताओं के दिल में स्थायी जगह नहीं बना सके।
अब उन्हें खुद तय करना है कि वे सिर्फ एक विलक्षण किस्से बनेंगे या फिर बिहार की राजनीति में सच में कोई “रासलीला” रचेंगे।

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