
बिहार की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है—कभी गठबंधन बदलने से, कभी समीकरण बदलने से, और कभी नेताओं के “अचानक हुए भाग्य उदय” से। इस बार सुर्खियों में हैं जेडीयू कोटे के जमा खान, जो पटना के गांधी मैदान में एक बार फिर मंत्री पद की शपथ लेते नजर आए—और वह भी कैबिनेट के इकलौते मुस्लिम मंत्री के तौर पर।
10% Muslim आबादी वाली सीट से लगातार जीत – जमा खान का ‘अनएक्सपेक्टेड’ एक्स फैक्टर
कैमूर जिले की चैनपुर सीट से जमा खान ने दोबारा जीत दर्ज की—और इस बार भी आरजेडी के उम्मीदवार बृज किशोर बिंद को 8362 वोटों से पटखनी दी। दिलचस्प बात?
चैनपुर में मुस्लिम आबादी सिर्फ 10% है। बावजूद इसके, जमा खान ने यहां अपनी पकड़ ऐसे बनाए रखी है जैसे सीट उनकी “पर्सनल जायदाद” हो।
बसपा से जेडीयू तक — जमा खान की ‘राजनीतिक यात्रा’ किसी बॉलीवुड स्क्रिप्ट से कम नहीं
जमा खान की पॉलिटिकल स्टोरी के कुछ हाइलाइट्स:
- 2010: कांग्रेस टिकट से चुनाव हार
- 2015: बसपा टिकट से चुनाव फिर हार
- 2020: बसपा टिकट से चुनाव जीत
- जीतते ही → जेडीयू में एंट्री
- नीतीश कुमार ने बनाया अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री
- 2024 में फिर से कैबिनेट में जगह
कहते हैं—जिनके पास टाइमिंग होती है, उनके पास सबकुछ होता है! जमा खान इसका बढ़िया उदाहरण हैं।
शपथ के बाद जमा खान की पहली प्रतिक्रिया
मंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार और एनडीए सरकार के काम को दुनिया पहचान रही है। मुझे जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, उसे ईमानदारी से निभाऊंगा। पहले सभी लंबित कार्य पूरे करूँगा।”
साफ है—टोन पूरी तरह से “Responsible Minister Mode ON” में था।

बिहार का नौघरा गाँव से लेकर वाराणसी तक—जमा खान की दिलचस्प सामाजिक कहानी
जन्म: कैमूर के नौघरा गाँव, परिवार: मुस्लिम, लेकिन खान खुद कई बार कहते हैं कि उनके पूर्वज हिंदू राजपूत थे, बाद में धर्म परिवर्तन हुआ। आज भी उनके हिंदू रिश्तेदारों से रिश्ते बेहद मजबूत हैं। पढ़ाई: वाराणसी से, राजनीति: शुरू से सक्रिय, लेकिन संघर्ष काफी लंबा रहा।
उनकी कहानी बिहार की उस मिट्टी के लोगों की तरह है—जहाँ संघर्ष तो है, लेकिन स्टाइल में जीतना भी आता है।
मुस्लिम नेताओं की जीत—कुल 11 में से 5 औवेसी की पार्टी से
इस चुनाव में कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते, जिनमें से 5 AIMIM (औवेसी की पार्टी) से हैं। लेकिन कैबिनेट में जगह मिली सिर्फ जमा खान को—इससे उनकी अहमियत और बढ़ जाती है।
जाहिर है—जमा खान को symbolic & strategic importance दोनों मिली है। एक तरफ minority representation तो दूसरी तरफ नीतीश के भरोसेमंद चेहरों में जगह।
