
सुनिए सुनिए, अमेरिका के सीनेटर लिंडसे ग्राहम साहब ने कहा है – “अगर भारत और चीन रूस से तेल लेंगे, लेकिन यूक्रेन को ‘सॉरी’ तक नहीं बोलेंगे, तो 500% टैक्स लगेगा उनके सामान पर।”
अब भारत बोले – “भाई, हमारे तो किचन में भी सरसों का तेल रूसी हो गया है।”
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सीनेटर ग्राहम का प्लान: पुतिन को बातचीत की मेज़ पर बुलाओ, नहीं तो भारत को टेबल फैन भी महंगा पड़ेगा!
ग्राहम साहब का कहना है कि वो रूस को यूक्रेन में गोलीबारी से हटाकर “गोलमेज़” वार्ता पर बैठाना चाहते हैं। लेकिन रास्ता थोड़ा अलग है – भारत की चाय महंगी कर दो, तो शायद पुतिन डर जाएंगे!
बिल को अब तक 84 सांसदों ने समर्थन दिया है। शायद इसीलिए इसे “तेल पर ठेल” अधिनियम कहा जा रहा है।
जवाब: “हम सीनेटर से बात कर रहे हैं, फ़िलहाल पंप पर लाइन लंबी है”
जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर से पूछा गया कि क्या 500% टैरिफ़ से भारत घबराया है, तो उन्होंने बड़े ठंडे दिमाग से जवाब दिया:
“हम लगातार संपर्क में हैं। जो होगा, देखा जाएगा। लेकिन अभी हमारी कार पेट्रोल से भरी है।”
कहा जा रहा है कि भारतीय एंबेसी सीनेटर ग्राहम को “रूसी तेल से बने पराठे” के ज़ायके से समझाने की कोशिश कर रही है।
भारत को क्यों नहीं दिख रही टैरिफ की “गंध”?
असल में भारत ने मई 2025 में 19.6 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी तेल खरीदा था। जून में ये आँकड़ा बढ़कर 22 लाख बैरल तक पहुँच गया – यानी “डिस्काउंट में जो मिल जाए, वही बेस्ट डील” पॉलिसी।
रूस से अब भारत जितना तेल खरीदता है, उतना इराक़, सऊदी और UAE से मिलाकर भी नहीं खरीदता। सरल भाषा में कहें, तो भारत ने रूस से “ऑयल डील”, और अमेरिका से “ऑय… हेलो!” कह दिया है।
ट्रंप जी भी इस बिल से खुश हैं। शायद उन्हें लगता है कि 500% टैक्स से रूस डर जाएगा और पुतिन ट्विटर पर माफ़ी मांग लेंगे।
भारत की विदेश नीति: “ना कच्चा गुस्सा, ना कच्चा तेल छोड़े”
भारत की चाल अभी संतुलन वाली है – सस्ता तेल भी चाहिए, और अमेरिकी नाराज़गी भी झेलनी है।
जयशंकर का स्पष्ट संदेश है:
“तेल देखो, तेल की धार देखो, और अगर बहुत टैरिफ़ आया, तो हम भी डिस्काउंट की जगह ‘डिप्लोमैसी’ डालेंगे।”
500% टैरिफ़ की धमकी एक “पॉलिटिकल प्रेशर कुकर” की तरह है, जिसमें फिलहाल सिर्फ़ सीटी बज रही है, भाप नहीं निकली।
अब देखना ये है कि ये किचन डिप्लोमेसी भारत की थाली में और क्या परोसती है – तेल, टैक्स या ट्रंप की ट्रोलिंग?
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