
इज़रायल खुलकर भारत के समर्थन में सामने आया है। यह तब हुआ जब इज़रायल खुद गाजा और हिज़्बुल्ला के खिलाफ युद्ध जैसी स्थितियों में उलझा है। लेकिन इसी दौरान रूस, जो दशकों से भारत का रणनीतिक साझेदार रहा है, इस मुद्दे पर खामोश रहा। ऐसे में सवाल उठता है —
क्या अब कूटनीतिक प्राथमिकताएं बदल गई हैं?
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इज़रायल क्यों आया भारत के समर्थन में?
इज़रायल का मानना है कि
“भारत आतंकवाद का शिकार रहा है।“
इज़रायल ने यह भी कहा कि “आतंकवाद के खिलाफ भारत और इज़रायल एकजुट हैं।”
इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण:
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दोनों देश कट्टरपंथी आतंकवाद से जूझ रहे हैं।
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भारत और इज़रायल के बीच गहरी सैन्य साझेदारी है।
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मोदी और नेतन्याहू के बीच व्यक्तिगत रूप से मजबूत संबंध हैं।
रूस क्यों रहा शांत?
रूस ने इस मुद्दे पर कोई सीधा समर्थन नहीं किया। जबकि भारत और रूस का रिश्ता शीतयुद्ध काल से चला आ रहा है।
रूस की चुप्पी के संभावित कारण:
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रूस आजकल चीन और पाकिस्तान के करीब दिख रहा है, खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद।
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भारत का अमेरिका और इज़रायल के साथ बढ़ता सहयोग रूस को असहज करता है।
इज़रायल-भारत दोस्ती बनाम रूस की रणनीतिक चुप्पी
तुलना | इज़रायल | रूस |
---|---|---|
भारत के पक्ष में बयान | दिया | नहीं दिया |
पाकिस्तान का विरोध | खुला | तटस्थ |
युद्ध स्थिति में भी समर्थन | हाँ | नहीं |
भारत की सुरक्षा में भूमिका | हथियार, खुफिया सहयोग | S-400, रक्षा साझेदारी |
वर्तमान झुकाव | भारत समर्थक | चीन-पाक संतुलन |
क्या बदलेगा भारत का रुख?
भारत रूस के साथ सदियों पुराने रिश्तों को खत्म नहीं करेगा, लेकिन इज़रायल जैसे दोस्तों की मुसीबत में निभाई गई दोस्ती भारत की विदेश नीति को प्रभावित कर सकती है। अब भारत को मूल्य आधारित डिप्लोमेसी और रणनीतिक हितों के बीच संतुलन साधना होगा।
इज़रायल ने ये साबित कर दिया कि सच्चे मित्र वही होते हैं, जो संकट में साथ खड़े रहें, चाहे वे खुद युद्ध में क्यों न हों। रूस की चुप्पी ने यह भी जता दिया कि कूटनीति में भावनाएं नहीं, हित काम करते हैं।
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