ईरान ने भारत को कहा धन्यवाद: क्या बदल रही है वैश्विक शक्ति की धुरी?

हुसैन अफसर
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मिसाइलें आसमान चीर रही थीं, बंकर बस्टर बम ज़मीन थर्रा रहे थे, और पूरा मध्य-पूर्व आग की लपटों में घिरा था।
लेकिन amidst the chaos, एक देश ने चुपचाप अपनी भूमिका निभाई — भारत।

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नई दिल्ली स्थित ईरान के दूतावास ने जैसे ही सोशल मीडिया पर भारत के लिए अपना संदेश पोस्ट किया — पूरी दुनिया चौंक गई। यह सिर्फ एक डिप्लोमैटिक ट्वीट नहीं था, बल्कि एक युद्धरत राष्ट्र की भावनात्मक स्वीकारोक्ति थी।

“भारत के महान और स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों को हार्दिक आभार।” — ईरान

यह धन्यवाद नहीं, दोस्ती की दस्तक है

ईरान ने सिर्फ जनता को नहीं, भारत की संसद, मीडिया, धार्मिक नेताओं, और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को धन्यवाद कहा।
भारत को “शांति, स्थिरता और वैश्विक न्याय का समर्थक” कहा गया — एक ऐसा टैग जो अब तक सिर्फ पश्चिमी देशों के पास था।

क्या ये सिर्फ शुक्रिया था… या एक नई धुरी की शुरुआत?

कुरुक्षेत्र से कर्बला तक की साझी विरासत

ईरान ने साफ लिखा कि यह समर्थन “हमारे सांस्कृतिक, सभ्यतागत और मानवीय संबंधों का प्रमाण है”। यानी यह सिर्फ कूटनीति नहीं, संवेदना का साझा इतिहास है। जहां धर्म, संघर्ष और संस्कृति ने दोनों देशों को जोड़ रखा है।

इंसानियत और इन्कलाब के बीच की खींचतान

यही वह दिन था जब ईरान ने तीन लोगों को फांसी भी दी — इज़राइल के लिए जासूसी के आरोप में। कुछ इसे राष्ट्रीय सुरक्षा कह रहे हैं, तो मानवाधिकार संगठन इसे राजनीतिक दमन बता रहे हैं। तो क्या भारत को समर्थन देने के बदले, इन आवाज़ों से भी खुद को अलग रखना होगा?

इज़राइल खामोश, अमेरिका सतर्क — और भारत निर्णायक?

इज़राइल और अमेरिका इस “शुक्रिया” पर चुप हैं। लेकिन भारत, जो अब तक मध्य-पूर्व में संतुलन बनाए रखता था, आज ईरान जैसे राष्ट्र के खुले समर्थन का पात्र बन चुका है।

क्या भारत अब वाकई वैश्विक शक्ति समीकरणों में निर्णायक चेहरा बन चुका है?

भारत के लिए यह सम्मान है… या परीक्षा?

क्या भारत अब मध्य-पूर्व की नई धुरी का भाग बनेगा? क्या अमेरिका और इज़राइल से रिश्ते अब नए मोड़ पर जाएंगे? या भारत अपनी “नम्र तटस्थता” बनाए रखेगा?

ये सवाल सिर्फ विदेश नीति के नहीं, बल्कि भारत की नैतिक साख और वैश्विक नेतृत्व की दिशा तय करेंगे।

भारत का उदय — सिर्फ शक्ति में नहीं, भरोसे में भी

यह ‘शुक्रिया’ सिर्फ शब्द नहीं, एक युद्ध में झुलसे राष्ट्र की पुकार है। एक ऐसा भारत, जिसने बिना हथियार उठाए, दिल से साथ निभाया। और शायद अब समय आ गया है कि भारत सिर्फ “सॉफ्ट पॉवर” नहीं, मॉरल पॉवर के रूप में उभरे।

मानवता की आवाज़ — एक तीर, दो निशाने

“भारत, तुमने साथ निभाया… अब हम नहीं भूलेंगे।” यह संवाद सिर्फ एक राष्ट्र से नहीं, आने वाले भविष्य से है। जहाँ भारत को लड़ना नहीं पड़ेगा… लेकिन सब उसकी ओर देखेंगे।

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