“ऑयल है तो लॉयल हैं!” नेटो की धमकी पर भारत का शांत मगर शार्प जवाब

Jyoti Atmaram Ghag
Jyoti Atmaram Ghag

नेटो महासचिव मार्क रट ने हाल ही में अमेरिका में बैठकर चेतावनी दी कि जो देश—भारत, चीन और ब्राज़ील—रूस से व्यापार जारी रखेंगे, उन पर सेकेंडरी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

और भारत ने कहा—“हमें रिपोर्ट्स दिख रही हैं, लेकिन फिलहाल गैस और तेल दिखना ज़्यादा ज़रूरी है!”

रणधीर जायसवाल बोले- ‘ऊर्जा पहले, ऊंची बातें बाद में’

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा:

“हमारे नागरिकों की ऊर्जा ज़रूरतें हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता हैं।”

उन्होंने आगे चुटीले अंदाज़ में जोड़ा— हम वैश्विक दोहरे मापदंडों से भी वाकिफ हैं, और उनसे सावधानी बरतना ज़रूरी है।

“कोरोना था नहीं, फैलाया कैसे?” तब्लीगी केस में हाईकोर्ट का तमाचा

मतलब साफ है—पेट्रोल महंगा हो, लेकिन पॉलिटिक्स सस्ती ना हो!

क्या भारत नेटो के दबाव में आएगा? जवाब: Short में ‘ना’

नेटो की धमकी का मकसद शायद ये था कि भारत सोचने लगे: “रूस से डील करूं या न करूं?”
लेकिन भारत ने सोच लिया:

“डील नहीं करेंगे तो पेट्रोल 150 पार, फिर जनता हमें सेकेंडरी नहीं, प्राइमरी बूट देगी!”

भारत की नीति है “स्टैन्ड विद ऑटोनॉमी”, ना कि “बेंड टू ब्लॉक पॉलिटिक्स”

रूस से व्यापार क्यों जरूरी है? समझिए सरल भाषा में

भारत, रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल, उर्वरक, और हथियार आयात करता है।
2022 के बाद से भारत ने रूस से डिस्काउंट पर कच्चा तेल लेना शुरू किया, जिससे घरेलू महंगाई में राहत मिली।

जब अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम खरीद रहा हो, तो भारत से नैतिकता की अपेक्षा थोड़ी अजीब सी लगती है।

नेटो की चेतावनी या जियो-पॉलिटिकल स्टैंड-अप कॉमेडी?

“सेकेंडरी सैंक्शन”—इस शब्द का वजन तो बहुत होता है, लेकिन असली असर तब होता है जब दुनिया उसका पालन करे।
भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देश अब पश्चिमी चाबुक से नहीं, अपने हित से नीतियां तय करते हैं।

“तू डाल डाल, हम तेल-तेल!”

यूक्रेन-रूस युद्ध और ब्रिक्स देशों का रुख

जहां अमेरिका और नेटो खुलकर यूक्रेन के साथ खड़े हैं, वहीं ब्रिक्स देशों ने कूटनीतिक तटस्थता बरकरार रखी है।
भारत बार-बार कह चुका है—“शांति संवाद से आएगी।”

तेल पर चेतावनी, जवाब में भारत की कूटनीति तेल से भी चिकनी!

नेटो की चेतावनी को भारत ने गंभीरता से सुना जरूर, पर भावनात्मक रूप से नहीं लिया।
रणनीति साफ है— “जहां से तेल सस्ता मिले, वहां से बात पक्की।”
और दोहरा मापदंड हो, तो जवाब भी डिप्लोमैटिक डंडा ही होगा।

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