राजेश श्रीवास्तव
कभी “हाउडी मोदी” और “नमस्ते ट्रंप” जैसे आयोजनों ने भारत-अमेरिका रिश्तों में गर्मजोशी ला दी थी। लेकिन आज वही डोनाल्ड ट्रंप भारत को आंखों में चुभता हुआ देश बता रहे हैं। सवाल उठता है: क्या पाकिस्तान की नई नजदीकियां, भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और ट्रंप की “डील मेकिंग” मानसिकता इसके पीछे है?
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पाकिस्तान का मोह या रणनीतिक जरूरत?
ट्रंप ने हाल ही में IMF से पाकिस्तान को 2.4 बिलियन डॉलर का बेलआउट दिलाने में मदद की। भारत के विरोध के बावजूद अमेरिका ने इसका समर्थन किया, जिससे संकेत मिले कि ट्रंप पाकिस्तान को फिर से रणनीतिक साझेदार बनाना चाहते हैं। अमेरिका को अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया पर नजर रखने के लिए पाकिस्तान की जरूरत है।
व्यापारिक तनाव और टैरिफ वॉर
ट्रंप ने भारत को “Tariff King” कहा, क्योंकि भारत अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर 50-100% ड्यूटी लगाता है। मई 2025 में, ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। भारत ने भी जवाबी टैरिफ की चेतावनी दी।
रूस-भारत नजदीकी से चिढ़
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने तटस्थ रुख अपनाया और रूसी तेल की खरीद जारी रखी। भारत के रूस से रक्षा सौदे और तेल व्यापार, अमेरिका की नीतियों के विपरीत हैं। ट्रंप की नाराज़गी इस बात से भी है कि भारत चीन और रूस दोनों से बैलेंस बनाकर चलता है।
भारत की आत्मनिर्भरता बनाम अमेरिका फर्स्ट
भारत का ‘Make in India’ अभियान ट्रंप की ‘America First’ नीति से टकराता है। भारत ने सौर और इलेक्ट्रॉनिक आयात पर ड्यूटी बढ़ाई, जिससे टेस्ला जैसी अमेरिकी कंपनियां प्रभावित हुईं। ट्रंप ने Apple CEO Tim Cook से कहा कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्यों करें?
भू-राजनीति में भारत की स्वतंत्रता, ट्रंप को नागवार
ट्रंप चाहते हैं कि भारत Indo-Pacific में चीन के खिलाफ फ्रंटलाइन रोल निभाए। लेकिन भारत की नीति संतुलित है, जिससे ट्रंप की रणनीति को झटका लगता है। कश्मीर पर मध्यस्थता की कोशिश, जिसे भारत ने ठुकरा दिया, वो भी ट्रंप को खटकी।
डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहे। जहां ट्रंप को भारत की रणनीतिक “स्वतंत्रता” चुभ रही है, वहीं भारत अपने हितों को प्राथमिकता दे रहा है।
“ट्रंप को भारत तब तक पसंद था जब तक भारत ‘हां’ कह रहा था। अब भारत ‘सोचकर’ जवाब देता है, और यही ट्रंप को अखरता है।”