
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में दोषियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मौत की सजा से जुड़े मामलों की सुनवाई केवल तीन जजों की पीठ कर सकती है।
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जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि चूंकि गुजरात हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था, इसलिए अब इस मामले की सुनवाई दो जजों की पीठ कर सकती है।
याचिका में क्या कहा गया था?
दोषियों के वकील संजय हेगड़े ने तर्क दिया कि:
लाल किला आतंकी हमले के मामले में तीन जजों की पीठ ने फैसला दिया था।
यदि दो जज मौत की सजा सुनाते हैं, तो इसे बाद में तीन जजों की पीठ को दोबारा सुनना पड़ेगा।
इसलिए शुरुआत से ही यह मामला तीन जजों की बेंच को सौंपा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका?
कोर्ट की दलील:
“तीन जजों की पीठ सिर्फ उन्हीं मामलों में आवश्यक है जहां हाईकोर्ट ने मौत की सजा को बरकरार रखा हो।
इस केस में हाईकोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदला है, इसलिए दो जजों की बेंच पर्याप्त है।”
कोर्ट ने 2014 में दिए अपने ही फैसले का हवाला देते हुए कहा कि:
“तीन जजों की पीठ सिर्फ उन मामलों में जरूरी है जहां मौत की सजा की पुष्टि हो चुकी हो।”
गोधरा कांड: पृष्ठभूमि
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच में आग लगने से 59 कारसेवकों की मौत हुई थी।
इसके बाद पूरे गुजरात में भयंकर दंगे भड़क उठे थे।
ट्रायल कोर्ट ने 11 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी।
गुजरात हाईकोर्ट ने 2017 में इन 11 को उम्रकैद में बदल दिया।
अब आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।
दोषियों ने भी हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराने के खिलाफ याचिका दायर की है।
अब इस मामले की सुनवाई दो जजों की पीठ द्वारा ही आगे बढ़ेगी।
गोधरा कांड भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में सबसे जटिल और संवेदनशील मामलों में एक रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न सिर्फ कानूनी प्रक्रिया की स्पष्टता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि मौत की सजा पर पुनर्विचार का ढांचा कितना सुस्पष्ट और सीमित दायरे में होता है।
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