
भारत में कई बार संसाधन की नहीं, मानसिकता की गरीबी देखने को मिलती है। चाहे मुफ्त का राशन हो, सब्सिडी हो या स्कीम — अगर आदमी की सोच में आत्मनिर्भरता नहीं है, तो सोने की थाली भी परोसी जाए, वो पूछेगा, “साइड में अचार क्यों नहीं?”
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भीख सिर्फ पैसे की नहीं होती, सोच की भी होती है
“सरकार कुछ करे तो क्यों किया?”
“न करे तो ये सरकार निकम्मी है!”
मतलब चाहे सिस्टम iPhone दे या ठेला — कुछ लोग पूछ ही बैठेंगे, “चार्जर नहीं है क्या?”
सोच का अपग्रेड ज़रूरी है, सिर्फ फोन का नहीं
सवाल ये नहीं कि कौन क्या दे रहा है। सवाल ये है कि क्या आप कुछ खुद भी देने के लिए तैयार हैं?
क्योंकि जो केवल लेने की आदत में जीता है, वो कभी देने वाला समाज नहीं बना सकता। सोने का कटोरा बस एक शो-पीस बनकर रह जाएगा।
क्या आप भी उस भीड़ में हैं जो इंतज़ार कर रही है “अगली स्कीम” की?
सवाल खुद से पूछिए — अगर मुझे सब कुछ मिल जाए, तो क्या मैं मांगना छोड़ दूंगा?
या फिर आप भी उस मानसिकता का हिस्सा हैं, जहाँ हर चीज़ का समाधान सरकार, किस्मत, और भक्ति में ढूंढा जाता है — मेहनत में नहीं।
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