
शुक्रवार को CBI ने ओडिशा में ED (प्रवर्तन निदेशालय) के एक वरिष्ठ अधिकारी चिंतन रघुवंशी को 20 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया। यानी, कानून की रखवाली करने वाला खुद ‘लेन-देन’ में व्यस्त पाया गया।
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बताया जा रहा है कि रघुवंशी 2013 बैच के IRS अधिकारी हैं और उन्होंने भुवनेश्वर के एक खनन कारोबारी से ईडी जांच रोकने या रिपोर्ट “थोड़ी पॉजिटिव” लिखने के बदले “फीस” की मांग की थी। बस फर्क इतना था कि ये फीस सरकारी चालान से नहीं, सीधे कैश से ली जानी थी।
जब जांचकर्ता खुद बन जाएं जांच के पात्र
ईडी पर पहले से ही राजनीतिक पक्षपात और सलेक्टिव कार्रवाई के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन अब जब उनके ही ऑफिसर रिश्वत लेते पकड़े जाएं, तो सवाल उठता है —
“ED का मतलब Enforcement Directorate है या Earning Department?”
सवाल यह भी है:
क्या ये कोई इकलौता मामला है, या सिर्फ ऊपर की बर्फ की परत दिखी है?
CBI की फिल्मी स्टाइल एंट्री
CBI ने खुफिया सूचना पर जाल बिछाया और बिल्कुल हिंदी फिल्मी अंदाज में ऑपरेशन को अंजाम दिया। घूस की रकम जैसे ही हाथ में आई — कैमरे ऑन, रेडी, एक्शन!
अब रघुवंशी जी निलंबन का ऑर्डर पढ़ रहे हैं और बाकी अफसर थोड़ी देर के लिए ‘कम प्रोफाइल’ में चले गए हैं।
संस्थानों की साख पर सवाल, जनता का भरोसा डगमगाया
पिछले कुछ वर्षों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों पर लोगों का विश्वास वैसे भी हिलता जा रहा है। ऐसे मामले “जो करे जांच, उसकी भी हो जांच” जैसे हालात पैदा कर देते हैं।
अब वक्त आ गया है जब इन संस्थाओं को आंतरिक स्वच्छता अभियान की सख्त जरूरत है — सिर्फ बाहर के घोटाले पकड़ने से नहीं चलेगा, घर का झाड़ू भी चलाना पड़ेगा।
ईडी बोली: सहयोग करेंगे, कुछ और नाम भी आ सकते हैं
ED ने कहा है कि वे CBI की जांच में पूरा सहयोग देंगे (अब क्या और कर भी सकते हैं!) और आंतरिक जांच भी शुरू कर दी गई है। ऐसा लगता है कि मामला तगड़ा है और कुछ और “कनेक्शन” सामने आ सकते हैं।
जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं…
CBI की इस कार्रवाई ने यह तो साबित कर दिया कि अब एजेंसियां भी आपस में एक-दूसरे की निगरानी करने लगी हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है —
जनता किस पर भरोसा करे?
अगर जांच एजेंसियां ही “डील एजेंसी” बन जाएं, तो फिर कानून की रक्षा कौन करेगा?