
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट का नया बयान सामने आया है – “राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने छह महीने के कार्यकाल में हर महीने एक शांति समझौता या सीजफायर करवाया है।”
उन्होंने मांग की कि डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाए, और अबकी बार सिर्फ नॉमिनेशन नहीं – ट्रॉफी घर तक भेजी जाए!
थाईलैंड-कंबोडिया से लेकर भारत-पाक तक… सब सुलझा लिया ट्रंप बाबा ने!
लेविट के मुताबिक:
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ट्रंप ने थाईलैंड और कंबोडिया के नेताओं को फोन करके कहा:
“पहले शांति करो, फिर डील करो!”
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इजरायल और ईरान के बीच गर्मी को ‘कूल’ किया।
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भारत-पाकिस्तान के बीच LOC पर फायरिंग नहीं, फोन कॉल चलवाई।
सवाल ये है – UN को कुछ पता चला क्या?
ट्रंप के डायलॉग्स से हुई ‘डायलॉग डिप्लोमेसी’
जब ट्रंप ने कंबोडिया और थाईलैंड को धमकी दी:
“No Peace, No Business with US!”
तो अगले दिन दोनों देशों ने झगड़ा खत्म कर दिया।
ट्रंप ने खुद कहा था कि “मैं डील मेकर हूं, वॉर ब्रेकर नहीं।”
अब देखना ये है कि नोबेल कमिटी इस डायलॉग से कितना प्रभावित होती है।
‘हर महीने एक शांति डील’ – या नया नेटफ्लिक्स शो?
कैरोलिन लेविट का कहना है:
“छह महीने में छह बार – ट्रंप ने टेबल पर बैठाकर दुनिया को शांत किया।”
मतलब कोई ‘Peaceflix Original Series’ चल रही थी क्या?
हर महीने एक नया देश –
एपिसोड 1: भारत-पाक
एपिसोड 2: इजरायल-ईरान
एपिसोड 3: थाईलैंड-कंबोडिया
(बाकी एपिसोड्स आने बाकी हैं…)
नोबेल के लिए क्या काफी है ये सब?
ट्रंप के समर्थकों का कहना है –
“ओबामा को बिना पूछे मिल गया था, ट्रंप को मिलना चाहिए पूछ-पूछ कर!”
पर विरोधी पूछते हैं –
“कौन सी शांति? किस देश में?”
क्योंकि कई देश खुद नहीं जानते कि उनका झगड़ा ट्रंप ने कब खत्म करवा दिया!
ट्रंप – शांति का ब्रांड या पॉलिटिक्स का नया स्क्रिप्टराइटर?
डोनाल्ड ट्रंप अगर शांति के इतने बड़े झंडाबरदार हैं, तो नोबेल कमिटी को शायद अब फैसला कर लेना चाहिए –
“नोबेल ट्रंप का – पॉलिटिकल या पैरोडी?”
“बिजली नहीं पर बवाल फुल टॉस – मंत्री जी अकेले ही सिस्टम से लड़ते दिखे!”