
रूस-युक्रेन से लेकर इजरायल-गाजा तक, लाखों टन बारूद हवा में उड़ चुका है। धरती हिली, शहर जले, लेकिन किसी ने नहीं पूछा – “AQI कितना हो गया भाई?”
लेकिन जैसे ही दिवाली आएगी, एक पटाखा भी फूटा नहीं कि — “ओह नो! कार्बन इमिशन! सांस नहीं आ रही!”
क्या सच में दिवाली का पटाखा ही पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है?
War = Strategic. Diwali = Problematic?
जब अमेरिका या रूस हवाई हमले करता है, तो उसे “defense strategy” कहा जाता है। लेकिन जब एक बच्चा ‘फूलझड़ी’ जलाता है, तो वो बन जाता है – “Planet Killer Jr.” Same smoke, different lens?
बम वही, मंशा अलग – यही Narrative Magic है!
युद्ध में बम: राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ज़रूरी!
दिवाली का पटाखा: बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़!
अरे भाई, अगर बम का काम है फटना, तो दिवाली का भी थोड़ा क्रेडिट दे दो।

TV Panels: “Diwali ने किया सब बर्बाद!”
दिवाली के अगले दिन न्यूज चैनल्स पर climate experts की बाढ़ आ जाती है। फेफड़े, ओज़ोन, AQI सब trending topic बन जाते हैं।
पर युद्ध के वक्त? “और चलते हैं आगे बिन मौसम बारिश की ख़बरों के साथ…”
मुद्दा सिर्फ पर्यावरण है, या कुछ और भी?
साल भर धड़ाधड़ गाड़ियां, फैक्ट्री, ACs, construction – सब कुछ चलता रहता है। लेकिन दीपावली आते ही शुरू होता है guilt-tripping:
“क्या आप अपने बच्चों को सांस लेने का हक़ देना चाहते हैं?” मतलब बाकी 364 दिन छुट्टी पर था पर्यावरण?
पटाखा जलाओ या मत जलाओ, पर दोहरापन मत जलाओ!
दिवाली का असली मकसद है – रोशनी, खुशी और एकता। हाँ, पर्यावरण भी ज़रूरी है – लेकिन सिर्फ एक त्योहार को टारगेट करना नहीं।
Let’s fight pollution – not ट्रेडिशन। Happy Diwali – with light, logic & a little laughter!
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