
“ये रोशनी का पर्व है साहब, लेकिन अगर आंखें ही बंद रखोगे तो उजाला कहां से दिखेगा?”
हर साल दिवाली आती है – रौशनी, मिठाई, नई खरीदारी, Instagram स्टोरीज़ और पटाखों के साथ। लेकिन उसी के साथ आते हैं – जुए की लत, मिलावटी मिठाइयां, प्रदूषण, हादसे और पुलिस केस। अब जब समाज सुधारक बनने का मौका खुद दिवाली दे रही है, तो एक पोस्ट तो बनती है Boss!
जुए में लक्ष्मी नहीं, चार्जशीट आती है!
“बस 10 रुपये के पत्ते, हल्का-फुल्का गेम है यार…” यही कहते-कहते लोग ताश के पत्तों के साथ अपनी किस्मत भी फाड़ देते हैं। दिवाली पर जुआ खेलने को कुछ लोग “परंपरा” बताते हैं। लेकिन ये वही परंपरा है जो आपकी जेब से पैसा निकालकर आपको FIR का कैंडिडेट बना देती है।
पुलिस क्या कर रही है?
इस बार पुलिस सिर्फ फील्डिंग में नहीं, बल्कि बैटिंग और बॉलिंग दोनों में माहिर है। गुप्त निगरानी, रेड और गिरफ्तारी… मतलब “Diwali Bonus” के लिए वो भी तैयार हैं – बस थोड़ा अलग अंदाज़ में। “लक्ष्मी जी को बुलाना है तो दिए जलाओ, ताश नहीं।”
मिठाई में प्यार हो, पाउडर नहीं
“शुद्ध देसी घी की मिठाई”
जब सुनते हैं तो मुंह में पानी आ जाता है। लेकिन जब खाते हैं तो अस्पताल के ER में डॉक्टर की आवाज़ आती है – ‘BP लो, ECG करो!’
आज की सच्चाई:
खोया नकली- काजू चीन से रंग चटकाने के लिए केमिकल और सफाई? वो तो WhatsApp यूनिवर्सिटी पर पढ़ी जाती है! FSSAI ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। अब जनता को खुद समझदार बनना होगा।
“दिवाली में मिठाई बांटो ज़रूर, लेकिन मिलावट नहीं।”
पटाखा वो नहीं जो ज़मीन पर फूटे, असली वो जो हवा में जहर छोड़ जाए!
“बचपन में तो कितनी तेज़ आवाज़ वाले बम फोड़े हैं…” आज यही आवाज़ कानों से लेकर फेफड़ों तक फाड़ रही है। आज का ‘फैशन’ क्या कहता है?
- Green Crackers – कम धुआं, कम शोर, ज्यादा शांति
- Controlled Zones – No Patakha Areas
- Timed Fireworks – एक सीमा में, एक टाइम पर
और कोर्ट क्या कहता है?
जज साहब ने पटाखों पर साफ़ कह दिया है – “प्रदूषण फैलाओगे, तो बेल नहीं मिलेगी।”
“बच्चों की दिवाली है, बूढ़ों की सासें नहीं!”
बाबा का बुलडोज़र: जो दिखेगा, वो मिटेगा!
कुछ लोग सोचते हैं, “त्योहार है, चलो थोड़ी बेधड़क बेधर्मी कर लेते हैं…” अवैध पटाखे बेच लो- मिठाई में रंग डाल दो- जुआ पार्टी कर लो-ट्रैफिक में लाउड म्यूजिक बजा दो लेकिन बाबा का बुलडोज़र तो GPS ट्रैकिंग में रहता है। कभी भी कहीं भी धराशायी कर सकता है –
फिर चाहे वो पान की दुकान हो या ताश की महफ़िल।
“अधर्म में परम धर्म खोजने की गलती मत करना – बुलडोज़र Neutral होता है!”
असल दिवाली: रौशनी बांटो, अंधेरा नहीं
दिवाली का असली मतलब है रौशनी फैलाना, नफ़रत मिटाना, मिठास बढ़ाना और उम्मीद को ज़िंदा रखना।
इस बार क्या नया करें?
किसी गरीब बच्चे को मिठाई दीजिए, कामवाली को बोनस दीजिए, किसी बूढ़े को दीपक भेंट कीजिए और किसी ग़मगीन को मुस्कुराने की वजह दीजिए।
“जो दूसरों के घर रौशन करता है, वही असली इंसान है।”
ज्ञान देना शौक नहीं, ये भी एक दीप जलाना है
हम जानते हैं कि हर किसी को “फ़न” चाहिए, पर ज़रा सोचिए – जब मस्ती की आड़ में आप खुद, आपका परिवार या समाज परेशान होता है तो क्या यही सच्ची दिवाली है?
दिवाली एक दिन का त्योहार नहीं, ये एक सोच है – “अंधेरे से उजाले की ओर”। तो… अब आपकी मर्ज़ी दिवाली मनाओ – स्मार्ट तरीक़े से
या फिर मना लो – जमानत की तारीख़ भी
“दीप जलाओ, दिमाग भी जलाओ – वरना अगली पोस्ट आपकी गिरफ्तारी की होगी, त्योहार की नहीं!”
आरोप: सम्राट चौधरी की डिग्री फर्जी, 10वीं पास भी हैं या नहीं, ये भी नहीं पता!