“हिंदू हूँ या सनातनी?” — धर्म भी हो गया ब्रांड, तो पहचान कौन सी रखी जाए?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

आज सोशल मीडिया पर हर तरफ आवाज़ है — “मैं सनातनी हूँ” या “मैं हिंदू हूँ”। लेकिन क्या दोनों में फर्क है या ये दो नाम एक ही रास्ते के हैं?

असल में “धर्म” का मतलब religion नहीं, बल्कि कर्तव्य, नीति और सत्य के मार्ग पर चलना है। धर्म वो नहीं जो मंदिर में दिखे, बल्कि वो है जो मन में जगे।

“सनातन” शब्द कहां से आया?

सनातन” शब्द संस्कृत से लिया गया है — इसका अर्थ है जो न कभी शुरू हुआ और न कभी खत्म होगा। वेद, उपनिषद और गीता में सनातन धर्म का जिक्र शाश्वत सत्य के रूप में हुआ है।

यानी, सनातन धर्म किसी व्यक्ति, गुरु या किताब की रचना नहीं — बल्कि यह प्रकृति के नियमों, कर्म सिद्धांत और आत्मा के शाश्वत अस्तित्व की समझ है।

“हिंदू” शब्द कहां से आया?

अब आते हैं “हिंदू धर्म” पर — दरअसल “हिंदू” कोई धार्मिक शब्द नहीं था। यह शब्द फ़ारसी और अरबी सभ्यता से आया, जो “सिंधु नदी” के पार रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ था। यानी “हिंदू” भौगोलिक पहचान थी, जबकि “सनातन” आध्यात्मिक पहचान है।

तो फिर सवाल — क्या हिंदू और सनातन अलग हैं?

नहीं भाई, अलग नहीं — नाम अलग, जड़ एक ही है! सनातन धर्म इसकी आत्मा है,  और हिंदू धर्म इसका व्यवहारिक रूप।

“सनातन धर्म” — वह दर्शन है जो आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म, सत्य और प्रेम सिखाता है।
“हिंदू धर्म” — वह जीवनशैली है जो पूजा, रीति-रिवाज और परंपराओं से उस दर्शन को जीती है।

दोनों का रिश्ता आत्मा और शरीर जैसा है — एक बिना दूसरे के अधूरा।

आज की उलझन: धर्म अब पहचान बन गया है

सोशल मीडिया के इस “रील युग” में धर्म अब hashtag बन गया है। कभी “जय श्रीराम” को ट्रेंड किया जाता है, तो कभी “सनातन खतरे में है” कहा जाता है। सच्चाई यह है कि धर्म कभी खतरे में नहीं होता, खतरे में तो बस इंसान की समझ होती है।

धर्म वो नहीं जो बांटे, वो है जो जोड़े

मोदी हों या मुनि, मंदिर हो या मस्जिद — धर्म का सार एक ही है- “सत्य बोलो, सेवा करो और सबमें ईश्वर देखो।”

तो अब फर्क मत ढूंढो कि “मैं हिंदू हूँ या सनातनी” — बस इतना याद रखो कि धर्म इंसानियत से बड़ा नहीं।

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