संविधान vs ट्रंप टैरिफ: कोर्ट बोली – ये अमेरिका है, आपकी कंपनी नहीं

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में दोबारा एंट्री लेते ही उन्होंने टैरिफ की तलवार फिर से निकाल ली थी, लेकिन इस बार अमेरिकी संविधान ने उन्हें पीछे से पकड़ लिया।

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मैनहट्टन की कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी को “संवैधानिक उल्टी” कहते हुए रोक लगा दी। अदालत ने साफ कहा:

“राष्ट्रपति साहब, ये व्यापार नीति है, ट्विटर पोल नहीं!”

“हर देश पर टैक्स लगाना, कोई गली का दुकान थोड़ी है”

ट्रंप प्रशासन ने चीन, कनाडा और मेक्सिको जैसे देशों पर इमरजेंसी एक्ट के तहत टैरिफ ठोक दिए थे। पर कोर्ट बोली:

“संविधान में व्यापार नीति की चाबी कांग्रेस के पास है, ना कि किसी पूर्व TV स्टार के पास।”

अदालत ने टैरिफ नीति को “सुपरपावर राष्ट्रपति सिंड्रोम” करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया।

चीनी छात्रों की पढ़ाई पर भी सख्ती – ‘पढ़ाई या जासूसी?’

दूसरी ओर, विदेश मंत्री मार्को रुबियो का नया फरमान सुनकर चीनी छात्र कह उठे – “हम कौन हैं? स्पायडरमैन?”

रुबियो का कहना है:

“हर छात्र की गहन सोशल मीडिया जांच की जाएगी। TikTok पसंद आया? वीज़ा कैंसल!”

अब चीनी छात्रों के लिए अमेरिका जाना पढ़ाई से ज्यादा FBI इंटरव्यू जैसा हो गया है।

आंकड़े बोलते हैं:

पिछले साल अमेरिका में करीब 2.8 लाख चीनी छात्र थे। अब वीज़ा पाने के लिए उन्हें शायद SAT के साथ-साथ FBI clearance test भी देना पड़ेगा।

PM ट्रंप का व्यापारिक वन मैन आर्मी सपना टूटा

ट्रंप ने टैरिफ को लेकर जो सपना देखा था — “अकेला टैक्स लगाएगा, चीन झुकेगा, अमेरिका जीतेगा” — उस पर अब अदालत ने बड़ी सी मोहर लगाकर कहा:

“जनाब, ये Oval Office है, आपका personal startup नहीं।”

जब अदालतें संविधान का पाठ पढ़ाएं और छात्र TikTok देखकर suspect बन जाएं, तब समझिए कि दुनिया बदल रही है – और शायद अमेरिका भी।

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