
लुधियाना वेस्ट उपचुनाव में करारी शिकस्त के बाद भारत भूषण आशु ने पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन ये केवल चुनावी हार नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर मचे घमासान का सार्वजनिक प्रदर्शन था।
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वडिंग-बाजवा बनाम आशु: कांग्रेस का घर जल रहा है
सूत्रों के मुताबिक, आशु ने पहले ही अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और प्रताप सिंह बाजवा से दूरी बना ली थी। उन्होंने दिल्ली दरबार से अपनी मर्ज़ी की प्रचार टीम पास करवाई और अपने ही अंदाज़ में चुनाव लड़ा, लेकिन पार्टी का समर्थन लगभग ना के बराबर मिला।
आप की जीत, कांग्रेस की हार नहीं – खुद की खुदाई थी!
19 जून को हुए चुनाव में ‘आप’ के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा को 35,179 वोट मिले, जबकि आशु केवल 24,542 वोट ही पा सके। 10,637 वोटों से हारने के बाद आशु ने “जनादेश का सम्मान” जरूर किया, लेकिन पोस्ट में गुस्से की तल्ख़ी भी झलकी।
कांग्रेस के भीतर खुली बगावत की आहट
अब कांग्रेस में खुली तकरार की शुरुआत मानी जा रही है। आशु गुट का दावा है कि वडिंग ने प्रचार से दूरी बनाकर उन्हें फँसाया। वहीं वडिंग गुट का कहना है – जब नेता ही बाग़ी हो, तो एकजुटता कैसे संभव?
क्या ‘आप’ के सामने कांग्रेस ने घुटने टेक दिए?
लुधियाना जैसी शहरी सीट पर कांग्रेस की हार ने साफ कर दिया है कि ‘आप’ की पकड़ मजबूत हो रही है और कांग्रेस भीतर से बिखर रही है। अब कांग्रेस हाईकमान को तय करना है – एक्शन या एक्सपोज़र?
लुधियाना वेस्ट उपचुनाव केवल एक सीट का मामला नहीं था, यह पंजाब कांग्रेस के बिखरने की शुरुआत है। अगर आलाकमान ने जल्द निर्णय नहीं लिया, तो पार्टी के पुनर्निर्माण की बजाय विसर्जन तय है।