
हिमाचल के ठंडे मौसम में चिदंबरम ने गर्मी फैला दी। खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल में पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार एक ‘ऐतिहासिक गलती’ थी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने इसकी कीमत जान देकर चुकाई, लेकिन सारा दोष उन्हीं पर डालना सही नहीं। मतलब, ये गलती थाली में सबके लिए सर्व की गई थी — सरकार, सेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियां… सबने मिलकर बनाई ‘प्लेट ऑफ ब्लू स्टार’।
#WATCH | Kasauli, Solan, HP: Former Home Minister and Congress leader P Chidambaram says, "… No disrespect to any military officers here, but that (Blue Star) was the wrong way to retrieve the Golden Temple. A few years later, we showed the right way to retrieve the Golden… pic.twitter.com/QpFJEGYNQQ
— ANI (@ANI) October 12, 2025
“ब्लैक थंडर चलाते, तो शायद बादल छंट जाते”
चिदंबरम ने सुझाव दिया कि अगर ऑपरेशन ब्लैक थंडर जैसा ऑपरेशन पहले ही चला दिया होता, तो इतिहास कुछ और होता।
(Translation: अगर तब tactical diplomacy होती, तो Golden Temple में तोप नहीं चलती।)
लेकिन अफसोस, 1984 की गर्मी में पॉलिटिकल पैन गर्म था और सेना की सॉल्यूशन पक चुकी थी।
SGPC ने घेरा: “चिदंबरम बोले हैं, आधा सच और पूरा सस्पेंस!”
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने चिदंबरम के बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया दी — स्वागत किया… लेकिन नमक के साथ।
SGPC बोली:
“यह कहना कि ये फैसला इंदिरा गांधी, सेना और एजेंसियों ने मिलकर लिया — ये ‘अर्धसत्य’ है।
असल में ये फैसला इंदिरा गांधी का सोलो मूव था। इसलिए चिदंबरम ‘पॉलिटिकल बायोग्राफी’ नहीं, बल्कि ‘पब्लिक रिलेशन थ्योरी’ पेश कर रहे हैं।”
(Burn level: Moderate to High)
6 जून 1984: जब सेना पहुंची स्वर्ण मंदिर
ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून से 10 जून 1984 तक चला, और 6 जून को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर में घुसकर भिंडरावाले और उसके साथियों को मार गिराया। भिंडरावाले ने दमदमी टकसाल के बैनर तले मंदिर को हथियारों का गोदाम बना रखा था।
सेना का मिशन था – “पवित्रता को पुनः प्राप्त करना”
पर सिख समुदाय को लगा – “पवित्रता को रौंद दिया गया।”
31 अक्टूबर 1984: जब इतिहास ने बदला रुख
ऑपरेशन के ठीक चार महीने बाद, इंदिरा गांधी की उनके ही सिक्योरिटी गार्ड्स द्वारा हत्या कर दी गई। और उसके बाद देश में वो भयानक दंगे भड़के, जिन्हें आज भी इतिहास के सबसे काले अध्यायों में गिना जाता है।
बयान है सियासी, लेकिन घाव हैं असली
चिदंबरम का यह बयान एक राजनीतिक ‘रियलिटी शो’ की नई एपिसोड की तरह आया है — जहां ‘गलतियां’ अब ‘मानी’ जा रही हैं, लेकिन जिम्मेदारियों की गेंद फिर से एक-दूसरे की तरफ उछाली जा रही है। SGPC का जवाब बताता है कि इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं होता, वो जज़्बातों में भी जिंदा रहता है।
अगर चिदंबरम आगे चलकर अपने बयान को “पर्सनल ओपिनियन” बता दें और कांग्रेस पार्टी “डिस्क्लेमर” लगा दे, तो चौकिए मत। क्योंकि आजकल नेता ‘बयान देते हैं’ और पार्टी ‘बयान धो देती है’।
“राष्ट्रपति तो बन गया हूं… अब दुनिया का महान राष्ट्रपति बनना चाहता हूं!”